Q1: सत्यनिष्ठा क्या है ?लोक प्रशासन के संदर्भ मे सत्यनिष्ठा के महत्व की चर्चा कीजिए ?
Answer -
सत्यनिष्ठा एक गुणवत्त अवधारणा है जिसे मात्रात्मक तरीके से परिभाषित नहीं किया जा सकता । सत्यनिष्ठा एक व्यापक एवं सर्वांगीण अवधारणा है| सामान्यतः सत्यनिष्ठा की कमी को भ्रष्टाचार के रूप में देखा जाता है|
- भ्रष्टाचार का संबंध सरकारी पद या लोक संसाधनों के दुरूपयोग निजी हितों के लिए या फायदें के लिए किए जाने से है|
- अतः सत्यनिष्ठा लोकसेवकों से अपेक्षित सारे मूल्यों को समाहित करती है जैसे - गैर-तरफदारी एवं भेदभावरहित, निष्पक्षता, समर्पण, सहानुभूति, सहनशीलता, संवेदना आदि |
लोक प्रशासन मे सत्यनिष्ठा का महत्व - -
- सत्यनिष्ठा इस बात की अपेक्षा करती है कि लोकसेवक का व्यवहार उस प्रकार का हो जो उसे लोकसेवक बनाता हो अर्थात लोकसेवक के संदर्भ में एक शोभनीय व्यवहार हो|
- सत्यनिष्ठ लोकसेवको का व्यवहार प्रस्तावित आचरण संहिता के अनुरूप होता है ।
- सत्यनिष्ठा एक परिपूर्ण अवधारणा है| इसलिए यह गैर-चयनित होता है एवं किसी प्रकार के समझौते से परे होता है|
- सत्यनिष्ठा लोकसेवक में सिर्फ जनहित की भावना से कार्य करने को प्रेरित करती है ।
- लोकसेवक के द्वारा अपने कर्तव्यों का का पालन एव उसका व्यवहार एक पेशेवर के रूप मे होता है ताकि जनता का विश्वास बना रहे ।
- संसाधनों का समावेशी प्रयोग व प्रभावी आधार पर होता है ।
- सत्यनिष्ठ लोकसेवकको विधि का पालन तथा न्याय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है ।
- सत्यनिष्ठा यह अपेक्षा करती है कि लोकसेवक के द्वारा अपनी शक्ति/प्राधिकार/विवेकाधिकार/स्वनिर्णय के शक्तियों का दुरूपयोग निजी हितों के लिए ना किया जाए|
- लोकसेवक के द्वारा किसी भी ऐसे उपहार को प्राप्त नहीं करना है जो उसके निर्णय या सत्यनिष्ठा के साथ कोई समझौता दिखे|
एक सत्यनिष्ठ लोकसेवक के द्वारा बिना प्राधिकार के किसी भी सरकारी सूचना को उजागर नहीं किया जाना है और यह सिद्धांत लोकसेवकों के सेवानिवृत्ति के उपरांत भी लागू होता है|
सत्यनिष्ठा विचार, व्यक्तव्य एवं क्रियाशीलता/व्यवहार में एकीकरण एवं सामंजस्य पर बल देता है|
Q2: भावनात्मक समझ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए यह बताइये की यह किस प्रकार लोक प्रशासन मे सुभेद्य वर्गो हेतु कल्याण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन मे सहायता प्रदान करता है ?
भावनात्मक समझ(इमोशनल इंटेलीजेंस) - प्रत्येक व्यक्ति में स्वाभाविक रूप से कुछ भावनाए जैसे - गुस्सा, विस्मय, डर/भय, ख़ुशी, उदासी, आश्चर्यचकित होना आदि होती है । इन भावनाओं का उचित प्रबंधन करने हेतु भावनात्मक समझ का होना अनिवार्य है|
भावनात्मक समझ के के अंतर्गत अपनी भावनाओ को समझना , उनका उचित प्रबंधन करना , स्वअभिप्रेरित करना ,तथा दूसरों की भावनाओ को पहचानना एवं प्रभावित करना और अन्तःपरस्पर सम्बन्ध को प्रभावशाली बनाना शामिल है ।
- सामान्यत लोक सेवक एक प्रशासक ,एक प्रबन्धक और नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाता है । इस दृष्टिकोण से भावनात्मक समझ के मध्यम से ही किसी व्यक्ति या समाज के साथ परस्पर संबंध स्थापित कर एक दूसरे की भावनाओ एवं दृष्टिकोणो को जानने मे सक्षम बनाती है ।
- समाज मे भ्रष्टाचार , भाई- भतीजा वाद , रिश्वतख़ोरी , बेईमानी जैसी सामाजिक और अनैतिक बुराइयाँ विद्यमान है । भावनात्मक समझ के अभाव मे कर्मचारियों मे अनैतिक होने की संभावना बनी रहती है ।
- इस संदर्भ मे लोक सेवक स्व नियमन ,आत्म अभिप्रेरण के माध्यम से अपने आप को नियंत्रित करता है ।
- सरकार द्वारा समवेशी विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओ का क्रियान्वयन किया जाता है । जिससे समाज में हाशिये के वर्ग को मुख्यधारा मे लाया जा सके ।
- लोक प्रशासक समानुभूति और सामाजिक दक्षता जैसे गुणो के कारण वह कमजोर वर्गो की जरूरतों और पीड़ाओ से तादात्म्य स्थापित करता है और उनकी समस्याओ का समाधान प्रस्तुत करता है ।
यदि किसी भी लोक सेवकों मे भावनात्मक समझ का कमी होगी तो कमजोर वर्गो के लिए चलायी जा रही योजनाओ को लागू करने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता मे कमी आने की संभावना बनी रहती है ।
उदाहरण के लिए अनुसूचित जनजाति के कल्याण एवं विकास को सुनिश्चित करने हेतु यह आवश्यक है कि अनुसूचित जनजाति का एकीकरण समाज के मुख्य विचारधारा में किया जाए एवं ऐसा करते समय अनुसूचित जनजाति की मूल संस्कृति का भी संरक्षण किया जाए। यह अपने आप में लोकसेवकों के भावनात्मक समझ की अपेक्षा करती है।