1)India's health sector and public health needs reflect a serious gap with respect to the current COVID-19 challenges. Review the above statement according to the needs of the present public health infrastructure?
वर्तमान कोविड19 की चुनौतियों के दृष्टिगत भारत के स्वास्थ्य क्षेत्रक और जन स्वास्थ्य की आवश्यकताओ के मध्य एक गंभीर खाई को प्रदर्शित किया । उपर्युक्त कथन की वर्तमान जन स्वास्थ्य की आवश्यकताओ के अनुरूप समीक्षा कीजिए ?
कोविड-19 महामारी ने भारत की उन कमियों को उजागर किया है, जो भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त हैं।भारत स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बांग्लादेश, चीन, भूटान और श्रीलंका समेत अपने कई पड़ोसी देशों से पीछे हैं। इसका खुलासा शोध एजेंसी 'लैंसेट' ने अपने 'ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज' नामक अध्ययन में किया है। इसके अनुसार, भारत स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता व पहुंच के मामले में 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है । भारत स्वास्थ्य सेवाओं में जीडीपी का महज़ 1.3 प्रतिशत खर्च करता है, जबकि ब्राजील स्वास्थ्य सेवा पर लगभग 8.3 प्रतिशत, रूस 7.1 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका लगभग 8.8 प्रतिशत खर्च करता है।
देश में 14 लाख डॉक्टरों की कमी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर जहां प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। वहां भारत में सात हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है
।
संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची के अनुसार जन स्वास्थ्य और सफाई, अस्पताल एवं औषधालय राज्यों के अधिकार में आते हैं। जबकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी कुछ कार्यक्रम जैसे चिकित्सा शिक्षा, परिवार नियोजन तथा जनसंख्या नियंत्रण केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
भारत में इस प्रकोप के बढ़ते असर ने इसके संक्रमण को रोकने, जीवन को बचाने और प्रभाव को सीमित करने के लिए अग्रिम रूप से, पूर्व सक्रिय, स्थितियों के अनुसार वर्गीकृत, एकजुट सरकार-एकजुट समाज दृष्टिकोण के साथ एक व्यापक रणनीति बनाने की जरूरत पैदा कर दी।
भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:
कई मसलों पर केंद्र और राज्यों के बीच असहमति पैदा हो जा रही है।कोरोना महामारी के चलते केंद्र और राज्यो के बीच सामंजस्य का अभाव भी दिखाई दिया
राज्यों में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोलने, जांच सुविधा, उपचार सुविधा, बीमारियों से बचाव के तरीके, चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की सेवा शर्तों में से किसी में भी एकरूपता देखने को कम ही मिली ।
आबादी के अनुपात में अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं, आधारभूत संरचना, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की भारी कमी है।
ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ की हालत सबसे अधिक खराब है । कई ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं खुल पाए हैं और अगर खुल भी गए हैं तो वहाँ पर कोई चिकित्सक जाना नही चाहता है।
आर्थिक विषमता के कारण लोगो की पहुँच निजी अस्पतालो तक नहीं हो पाती ।स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में निजी अस्पतालों की संख्या 8 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 93 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वास्थ्य सेवाओं में निजी निवेश 75 प्रतिशत तक बढ़ गया है।महँगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है। भारत में महिलाएँ एवं बच्चे बड़ी तादाद में इस महामारी के शिकार हुए ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक वर्ग में यह अहसास कि स्वास्थ्य सेवा सामान्यतः मतदाताओं के लिये कोई प्राथमिकता नहीं है, इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं मे सुधार के उपाय -
वन नेशन वन हेल्थ पॉलिसी’ को सही तरीके से लागू किया जाए तथा 15 वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर जन स्वास्थ्य के विषय को संविधान की समवर्ती सूची का विषय बनाया जाए ।
2014 में भारतीय सुरक्षा संघ बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संवैधानिक सिद्धांतों को राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता के साथ क्षेत्रीय विविधता के हिसाब से बनाया जाना चाहिए। सहकारी संघवाद, विधायी विषयों विशेष रूप से जन कल्याणकारी विषयों के अनुरूप शासन ढांचे को सक्षम करने की आवश्यकता है।
टेलीमेडिसिन सेवा का उपयोग करके देश के सुदूर भागों और पिछड़े क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा में गुणात्मक सुधार ला सकते हैं।
चिकित्सा की ऐलोपैथिक पद्धति के अलावा उपलब्ध अन्य चिकित्सीय पद्धति पर भी जोर देना चाहिये, जैसे- आर्युर्वेद, योग, होमोपैथिक आदि। वैकल्पिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयास करना चाहिये।
विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हुई बातों का रेडियो एवं टेलीविज़न के माध्यम से प्रचार-प्रसार करना चाहिये।
आबदी के अनुपात में डॉक्टर अस्पताल एवं अन्य सुविधाओं का विस्तार किया जाए ।
सरकार को यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि निजी चिकित्सा उद्योग सिर्फ चुनिंदा शहरों तक सीमित ना रहें बल्कि ये अपनी सुविधाओं का विस्तार छोटे एवं पिछड़े शहरों में भी करें तथा सरकार को यह भी देखना चाहिये कि वे मरीजों से मनमानी रकम ना वसूल सकें इसके लिये भी समुचित तंत्र की व्यवस्था की जानी चाहिये।
महामारियों और बीमारियों के सफलतापूर्वक प्रबंधन के अपने अनुभव के आधार पर, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को अपेक्षित रणनीति, योजनाएं और प्रक्रियायों की जानकारी उपलब्ध करना और बेहतर क्रियान्वयन करना ।
कोविड 19 जैसे महामारियों को देखते हुए एकीकृत स्वास्थ्य नीति की आवश्यकता है । जिससे संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित उपचारित किया जा सके। । देश में स्वास्थ्य संरचना, उपचार परीक्षण व शोध व निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि सबके स्वास्थ्य का सपना साकार हो सके।
2)New Education Policy 2021 has exposed the broad spectrum of educational revolution in India. Analyse.
नई शिक्षा नीति 2021 भारत मे शैक्षिक क्रांति की विस्तृत फ़लक को उजागर किया है। समीक्षा कीजिए।
एप्रोच -
उत्तर की शुरुआत शिक्षा के महत्व की चर्चा करते हुए कीजिये|
इसके पश्चात राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिन्दुओं का विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिये|
अंत में नई शिक्षा नीति की आवश्यकता और चुनौतियों की चर्चा करते हुए उत्तर का समापन कीजिये|
उत्तर -
-शिक्षा के संबंध में गांधी जी का तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। इन्हीं सब चर्चाओं के मध्य हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था|
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु
स्कूली शिक्षा संबंधी प्रावधान
-नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल करता है|
-पाँच वर्ष की फाउंडेशनल स्टेज (Foundational Stage) - 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2
-तीन वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्टेज;
तीन वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) चरण - ग्रेड 6, 7, 8 और 4 वर्ष का उच (या माध्यमिक) चरण - ग्रेड 9, 10, 11, 12
-NEP 2020 के तहत HHRO द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके द्वारा वर्ष 2025 तक कक्षा-3 स्तर तक के बच्चों के लिये आधारभूत कौशल सुनिश्चित किया जाएगा|
भाषायी विविधता का संरक्षण
NEP-2020 में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है|
शारीरिक शिक्षा
विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य, मार्शल आर्ट को स्थानीय उपलब्धता के अनुसार प्रदान करने की कोशिश की जाएगी ताकि बच्चे शारीरिक गतिविधियों एवं व्यायाम वगैरह में भाग ले सकें|
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संबंधी सुधार
इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा।
कक्षा-6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप (Internship) की व्यवस्था भी की जाएगी।
उच्च शिक्षा से संबंधित प्रावधान
-NEP-2020 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3% (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50% तक करने का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।
-NEP-2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को अपनाया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक)।
पूर्ववर्ती शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
-बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये मौजूदा शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
-शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने, नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
-भारतीय शिक्षण व्यवस्था की वैश्विक स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शिक्षा के वैश्विक मानकों को अपनाने के लिये शिक्षा नीति में परिवर्तन की आवश्यकता थी।
नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ
-राज्यों का सहयोगः शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।
-महँगी शिक्षाः नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महँगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
-शिक्षा का संस्कृतिकरणः दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
-फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होनाः कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।
-वित्तपोषणः वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6%खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।
-मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।
3)In spite of adequate food production in India, the presence of malnutrition shows a conflicting character. Throw light on the rationale of the National Nutrition Mission in the context of this statement?
भारत मे पर्याप्त खाद्य उत्पादन के बावजूद कुपोषण की उपस्थिति एक विरोधभाषी चरित्र को दर्शाती है । इस कथन के संदर्भ मे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन के औचित्य पर प्रकाश डालिए ?
भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020 में, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 296.65 मिलियन टन दर्ज किया गया था, जो कि वित्त वर्ष 19 में 285.21 मिलियन टन की तुलना में 11.44 मिलियन टन अधिक था।फिर भी वर्ष 2017 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की 51 प्रतिशत महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं। भारत में कुपोषण एक अत्यंत जटिल मुद्दा है, आँकड़ों के अनुसार भारत की तकरीबन एक तिहाई जनसंख्या कुपोषण का सामना कर रही है, वहीं लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त मात्रा में भोजन भी प्राप्त नहीं हो पाता।
सामाजिक बुनियादी सुविधाओ तक लोगो की पहुँच तथा उत्पादित खाद्यानों तक सीमित पहुँच के कारण कुपोषण की समस्या बनी हुई है ।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन -
इस योजना की सहायता से भारत सरकार देश के बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को पोषण युक्त भोजन प्रदान करने का प्रस्ताव किया है । . जिससे भारत के बच्चों एवं महिलाओं को कुपोषण का शिकार होने से बचाया जा सके।
इसमे केंद्र ,राज्य व आईबीआरडी /एम बी डी के सहयोग से आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से संचालित किया जाएगा ।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय पोषण मिशन का औचित्य -
देंश से कुपोषण जैसी महामारी को समाप्त करना ही इस योजना का मुख्य उद्देंश्य हैं।
गरीब परिवार अपने बच्चों व गर्भवती को संतुलित भोजन नही दें उन्हें संतुलित भोजन प्राप्त होगा ।
तीन वर्ष के बच्चों को ऑंगनवाडी के तहत संतुलित भोजन की प्राप्ति होगी ।
गर्भवती महिलाओं को संतुलित भोजन प्रदान कर कुपोषण से बचाव होगा तथा साथ ही मां से होने वाले बच्चें क भी स्वस्थ होंगे ।
इसके तहत लगभग 10 करोड बच्चों व महिलाओं को लाभ होगा ।
कम वजन के बच्चों की संख्या को पहले चरण में 2 प्रतिशत कम करने के लक्ष्य की प्राप्ति होगी ।
भारत में खून की कमी होने (एनीमिया) का शिकार होने वाले बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। इस मिशन की मदद से खून की कमी वाली समस्या से भी निपटा जाएगा। मिशन के माध्यम से एनीमिया से पीड़ित बच्चों एवं महिलाओं की संख्या में 3 प्रतिशत की कमी लायी जाएगी।
2022 तक स्टंटिग रेट को 4% से 25% तक लाने की लक्ष्य की प्राप्ति होगी ।
इस मिशन को लागू करने के लिए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा, जो आंगनवाड़ी में काम करने वालों की मदद करेगी। सरकार इस योजना को स्मार्ट फोन से भी लिंक करेगी, जिससे कर्मचारियों को इस योजना का सञ्चालन में और भी आसानी हो सके।
इससे न सिर्फ कुपोषण की समस्या का समाधान सुनिश्चित होगा बल्कि लैंगिक विभेद को समाप्त कर समवेशी विकास , सामाजिक न्याय और सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने मे मदद मिलेगी ।
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