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SHIKHAR Mains 2023 Day 38 Model Answer Hindi

Updated : 2nd Aug 2023
SHIKHAR Mains 2023 Day 38 Model Answer Hindi

Q1: संघीय और एकात्मक शासन के बीच अंतर क्या है? भारतीय संविधान की एकात्मक और संघीय विशेषताओं का विवरण दीजिए।

What is the difference between the Federal and Unitary government? Enumerate Unitary as well as Federal features of the Indian Constitution.

दृष्टिकोण-

  • भूमिका में संघीय और एकात्मक शासन के विषय में लिखिए । 

  •  संघीय और एकात्मक शासन के बीच अंतर को लिखिए । 

  • भारतीय संविधान की एकात्मक और संघीय विशेषताओं का विवरण को लिखते हुए उचित निष्कर्ष दीजिए । 

उत्तर:

राजनीति शास्त्रियों ने राष्ट्रीय सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार के संबंधों की प्रकृति के आधार पर सरकार को दो भागों - एकल व संघीय में वर्गीकृत किया है। 

परिभाषा के अनुसार, एकल या एकात्मक सरकार वह है, जिसमें समस्त शक्तियां एवं कार्य केंद्रीय सरकार और क्षेत्रीय सरकार में निहित होती हैं। दूसरी ओर संघीय सरकार वह है, जिसमें शक्तियां संविधान द्वारा केंद्र सरकार एवं क्षेत्रीय सरकार में विभाजित होती हैं। दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं। 

ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, चीन, इटली, बेल्जियम, नॉर्वे, स्वीडन,स्पेन आदि में सरकार का एकात्मक स्वरूप है, जबकि अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, ब्राज़ील, अर्जेंटीना आदि में सरकार का संघीय मॉडल है।

 

संघीय सरकार

एकात्मक सरकार

दोहरी सरकार ( अर्थात् राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकार ) ।

एकल सरकार राष्ट्रीय सरकार होती है, जो क्षेत्रीय सरकार बना सकती है।

लिखित संविधान ।

संविधान लिखित भी हो सकता है (फ्रांस) या अलिखित (ब्रिटेन) भी ।

राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन ।

शक्तियों का कोई विभाजन नहीं होता तथा समस्त शक्तियां राष्ट्रीय सरकार में निहित होती हैं ।

संविधान की सर्वोच्चता ।

संविधान सर्वोच्च भी हो सकता है (जापान) और नहीं भी (ब्रिटेन) ।

कठोर संविधान ।

संविधान कठोर भी हो सकता है (फ्रांस) या लचीला (ब्रिटेन) भी ।

स्वतंत्र न्यायपालिका ।

न्यायपालिका स्वतंत्र भी हो सकती है नहीं भी ।

द्विसदनीय विधायिका |

विधायिका  द्विसदनीय भी हो सकती है (ब्रिटेन) और एक सदनीय  (चीन) भी ।

 

भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं-

भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं निम्नलिखित है:

  • द्वैध राजपद्धति - संविधान में संघ स्तर पर केंद्र एवं राज्य स्तर पर राजपद्धति को अपनाया गया। प्रत्येक को  संविधान द्वारा क्रमशः  अपने क्षेत्रों में संप्रभु शक्तियां  प्रदान की गई है।  

  • लिखित संविधान:- हमारा संविधान न केवल लिखित अभिलेख है वरन्  विश्व का सबसे विस्तृत संविधान भी है। 

  • शक्तियों का विभाजन:- संविधान में केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। इनमें सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य एवं दोनों से संबंधित सूची निहित हैं । 

  • संविधान की सर्वोच्चता:- संविधान सर्वोच्च है केंद्रीय राज्य सरकार द्वारा प्रभावी कानूनों के विषय में इसकी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। 

  • कठोर संविधान:- संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन एवं संविधान की सर्वोच्चता  तभी बनाए रखी जा सकती है, जब संविधान में संशोधन की प्रक्रिया कठोर हो। यद्यपि संविधान में संशोधन इस सीमा तक कठोर है, जिससे वे प्रावधान जो संघीय संरचना ( यथा-केंद्र-राज्य संबंध एवं न्यायिक संगठन) से संबंधित है मात्र केंद्र एवं राज्य सरकारों की समान संस्तुति से ही संशोधित किए जा सकते हैं। 

  • स्वतंत्र न्यायपालिका:- संविधान में दो कारणों से उच्चतम न्यायालय ने नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया है। एक, अपनी न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग कर संविधान की सर्वोच्चता को स्थापित करना, और दूसरा, केंद्र एवं राज्य के बीच विवाद के निपटारे के लिए। 

  • द्विसदनीय:- संविधान ने द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की है- उच्च सदन(राज्यसभा) और निम्न सदन(लोकसभा) । राज्यसभा भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि लोकसभा भारत के लोगों (पूर्ण रूप से) का । राज्यसभा (यद्यपि कम शक्तिशाली है) केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती है। 

संविधान की एकात्मक विशेषताएं 

उपरोक्त संघीय ढांचे के अलावा भारतीय संविधान की निम्नलिखित एकात्मक या गैर-संघीय विशेषताएं भी हैं, जो इस प्रकार है:

  • सशक्त केंद्र:- शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में है, जो कि संघीय दृष्टिकोण के काफी विरुद्ध है। 

  •  राज्य अनश्वर नहीं:- अन्य संघों के विपरीत भारत में राज्यों को क्षेत्रीय एकता का अधिकार नहीं है। 

  • एकल संविधान:- सामान्यतः एक संघ  में राज्यों को केंद्र से हटाकर अपना संविधान बनाने का अधिकार होता है भारत में इससे इतर राज्यों  ऐसी कोई शक्ति नहीं दी गई है। 

  • संविधान का लचीलापन:- अन्य संघीय प्रणालियों की तुलना में भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया कम कठोर है। 

  •  राज्य प्रतिनिधित्व में समानता का अभाव:- राज्यों की जनसंख्या के आधार पर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाता है।  

  • आपातकालीन उपबंध:- संविधान तीन तरह की आपातकाल व्यवस्था निर्धारित करता है- राष्ट्रीय राज्य एवं वित्त। आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार के पास सभी शक्तियां आ जाती हैं और राज्य, केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं। 

  • एकल नागरिकता:- दोहरी व्यवस्था के बावजूद भारत का संविधान, कनाडा की तरह एकल नागरिकता व्यवस्था को अपनाता है। 

  • एकीकृत न्यायपालिका :- भारतीय संविधान द्वारा सबसे ऊपर उच्चतम न्यायालय के साथ एकात्मक न्यायपालिका की स्थापना की गई है और इसके अधीन राज्य-उच्च-न्यायालय होते हैं। 

  • एकीकृत लेखा जांच मशीनरी:- भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक न केवल केंद्र के बल्कि राज्यों के खातों की भी  जांच करता है। 

  • राज्य सूचीं पर संसद का प्राधिकार:- इस सूची के विषयों पर राज्यों को काफी अधिकार दिये जाने के बावजूद केंद्र का सूची के विषयों पर अंतिम अधिकार बना रहता है। संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य सूची में राष्ट्रीय महत्व को प्रभावित करने वाले विषयों पर राज्यसभा द्वारा पारित होने पर विधान  बना सकती है। 

  • राज्यपाल की नियुक्ति:- राज्यपाल राज्य प्रमुख होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।  वह केंद्र के एजेंट के रूप में भी कार्य करता है राज्यपाल के माध्यम से केंद्र, राज्य पर  नियंत्रण करता है। 

  • एकीकृत निर्वाचन मशीनरी:- चुनाव आयोग न केवल केंद्रीय चुनाव संपन्न कराता है बल्कि राज्य विधानमंडलों के चुनाव भी कराता है लेकिन इस इकाई की स्थापना राष्ट्रपति द्वारा होती है और राज्य इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। 

  • राज्यों के विधेयकों पे वीटो :- राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधायकों को राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए सुरक्षित रखने का अधिकार है। 

                  उपरोक्त व्यवस्था से यह स्पष्ट होता है कि भारत का संविधान अमेरिका, स्विजरलैंड और ऑस्ट्रेलिया की तरह एक परंपरागत संघीय व्यवस्था से भिन्न संविधान है और इसमें कई एकात्मक और गैर-संघीय  विशेषताएं हैं, जैसे केंद्र के पक्ष में शक्ति का संतुलन है। 

बोम्मई मामले (1994 ) में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि संविधान संघीय है और संघीय यह इसकी 'मूल विशेषता' है । यह महसूस किया गया कि 'संविधान की व्यवस्था के तहत राज्य की तुलना में केंद्र में बड़ी शक्तियां निहित हैं।' इसका मतलब यह नहीं कि राज्य केंद्र पर ही निर्भर हैं।

 

Q2: भारत में नागरिक चार्टर या नागरिक अधिकार पत्र में सामान्यतः कैसी कमियां विद्यमान हैं? नागरिक चार्टरों को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सुझावों का उल्लेख कीजिये|

What are the common issues in the Citizen Charter in India? Also give some suggestions to make Citizen Charter more effective. (12 Marks)

 

दृष्टिकोण:

  • नागरिक चार्टर को परिभाषित करते हुए एवं भारत में उसके विकास को दर्शाते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये|

  • अगले भाग में, भारत में नागरिक चार्टर में विद्यमान कमियों का उल्लेख कीजिये|

  • अगले भाग में, नागरिक चार्टरों को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कुछ सुझावों का उल्लेख कीजिये| 

  • निष्कर्षतः, नागरिक चार्टरों के संबंध में संसदीय समिति के विचारों को बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये|

 

उत्तर-

 

नागरिक घोषणापत्र लोकसेवा आपूर्तिकर्ताओं के द्वारा प्रस्तुत एक लिखित दस्तावेज/शपथपत्र होता है जिसके माध्यम से आपूर्तिकर्ता संगठन एवं उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बढ़ाने के लिए एवं संगठन को पारदर्शी, अनुक्रियाशील एवं जबावदेह बनाने के लिए पूर्वक्रियात्मक घोषणा की जाती है| इसमें सेवा की गुणवत्ता, मानकता, सेवा संबंधी विकल्प, जबावदेही के तत्व, धन की कीमत एवं शिकायत निवारण तंत्र की उपलब्धता से संबंधित घोषणाएं शामिल रहती हैं| 



सेवा प्रदायी संगठन को पारदर्शी बनाने हेतु यह एक नैतिक प्रयास है जिसकी शुरुआत 1991 में ब्रिटेन से हुयी थी| भारत में नागरिक घोषणापत्र को लाने का प्रथम प्रयास 1996 में हुआ जब मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में मुख्य सचिवों के सम्मेलन के दौरान प्रशासन को जबावदेह एवं अनुक्रियाशील बनाने के लिए चरणबद्ध रूप में नागरिक घोषणापत्र लाने की सिफारिश की गयी| 1997 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुए मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में नागरिक घोषणापत्र को लागू करने का निर्णय लिया गया| इसके बाद विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, निदेशालयों एवं अन्य कार्यालयों द्वारा प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग(DAR & PG) की सहायता से अनेकों नागरिक चार्टरों का विकास हुआ| भारत में नागरिक घोषणापत्र सरकारी एवं लोकक्षेत्र के संस्थाओं की सेवा आपूर्ति संबंधी प्रतिबद्धता को दर्शाता है| 

 

नागरिक चार्टरों के प्रमुख लक्षण या चारित्रिक विशेषताएं 

  • विभाग द्वारा उपलब्ध करवाई गयी विशिष्ट सेवाओं की सूची;

  • सेवा आपूर्ति के लिए उत्तरदायी कार्यालयों की अवस्थिति लोकेशन एवं समयावधि;

  • सेवा उपलब्ध करवाने वाले पदाधिकारियों के नाम एवं लगने वाला संभावित समय;

  • शिकायत निवारण प्राधिकरण या पदाधिकारी एवं क्षतिपूर्ति संबंधित प्रावधान;

  • विगत 23 वर्षों में यद्यपि नागरिक घोषणापत्र देश में लागू हुआ तथापि इसमें अनेक खामियां दृष्टिगोचर होती हैं| 

 

इस संदर्भ में, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा एवं अन्य एजेंसियों द्वारा समीक्षा के माध्यम से दी गयी प्रमुख खामियां निम्नलिखित हैं- 

  • आवश्यक अधोसंरचनात्मक विकास एवं पहल का अभाव;

  • चार्टर में किये गये वायदों को पूरा करने के लिए उसके आंकलन और सुधार करने की दृष्टि से पर्याप्त आधार कार्य किये बिना नागरिक चार्टरों का निर्माण;

  • जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार का अभाव;

  • विभिन्न स्तर पर पदाधिकारियों में प्रशिक्षण का अभाव;

  • प्रशासनिक पदाधिकारियों के बीच संवाद का अभाव;

  • कर्मचारियों के बीच अभिप्रेरण एवं उत्तरदायित्व का अभाव;

  • नागरिक घोषणापत्र में भाषाई जटिलता की समस्या;

  • नागरिक घोषणापत्रों को पुनर्मूल्यांकन एवं समीक्षा के दौर से ना गुजारने की समस्या;

  • चार्टरों के निर्माण के समय सभी हितधारकों(सिविल सोसाइटी, एनजीओ, उपभोक्ताओं आदि) से परामर्श प्रक्रिया का अभाव;

  • घटिया डिजाइन तथा विषयवस्तु;

  • अधिकांश संगठनों के पास सार्थक और सारगर्भित नागरिक चार्टर तैयार करने की पर्याप्त योग्यता नहीं;

  • वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों आदि की जरूरतों पर उतना ध्यान ना रखना;

 

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा नागरिक घोषणापत्र को प्रभावशाली बनाने हेतु सुझाव 

  • मानसिकता में बदलाव ताकि प्रशासन का जनोन्मुखी होना;

  • जागरूकता एवं परामर्श से संबंधित पहल करना;

  • व्यापक परामर्श जिसके तहत प्रक्रिया में सिविल सोसायटी भी सम्मिलित हो|

  • ई-अभिशासन को प्रभावशाली तरीके से लागू करना;

  • शिकायत निवारण तंत्र को प्रभावशाली बनाना तथा शिकायतों एवं समाधान के संबंध में डाटाबेस का निर्माण करना;

  • नागरिक लोकपाल की अवधारणा का विकास करना;

  • संविधान के अनुच्छेद 51A के तहत नागरिकों को उनके कर्तव्य के प्रति अवगत कराना;

  • नागरिक घोषणापत्र तैयार करने, लागू करने एवं पर्यवेक्षण करने वाले पदाधिकारियों/कर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षण देना;

  • इस क्षेत्र में विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं को दोहराना;

  • सभी क्षेत्रों के लिए एक आकार उपयुक्त नहीं जिससे चार्टर तैयार करते समय विकेंद्रीकृत कार्यकलाप का दृष्टिकोण रखना;

  • संगठन के चार्टर के समग्र क्षेत्र के अंतर्गत प्रत्येक स्वतंत्र यूनिट के लिए नागरिक चार्टर तैयार किया जाना चाहिए|

  • नागरिक चार्टर संक्षिप्त होने चाहिए तथा सेवाओं के संदर्भ में पक्की वचनबद्धता की जानी चाहिए

  • चार्टर में दी गई वचनबद्धताओं को पूरा करने के लिए आंतरिक प्रक्रिया और संरचना में सुधार किया जाना चाहिए|

  • चूक के मामले में समाधान तंत्र का विकास;

  • नागरिक चार्टर का समय समय पर आकलन;

  • उपभोगता फीडबैक का इस्तेमाल करके बेंचमार्क निर्धारण;

  • अधिकारियों को परिणामों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए;

 

संसदीय समिति ने यह पाया था कि अधिकांश सरकारी संगठनों में चार्टर निर्माण और कार्यान्वयन के प्रारंभिक अथवा मध्य स्तर पर हैं| इनमें तेजी लाये जाने और प्राथमिकता के सतह लागू किये जाने की जरुरत है| इन चार्टरों के माध्यम से प्रशासन को जबावदेह, पारदर्शी तथा अधिक अनुक्रियाशील बनाने में बेहतर तरीके से मदद मिल सकती है|