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SHIKHAR Mains 2023 Day 14 - Model Answer Hindi

Updated : 22nd Jun 2023
SHIKHAR Mains 2023 Day 14 - Model Answer Hindi

भारत मे खाद्य प्रसंस्करण आपूर्ति शृंखला प्रबंधन की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए इसके समाधान का मार्ग प्रस्तुत कीजिये ?

While mentioning the challenges of food processing supply chain management in India, Discuss ways to overcome it?

 

दृष्टिकोण

  • भूमिका में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन को परिभाषित कीजिए।  
  • खाद्य प्रसंस्करण आपूर्ति शृंखला  प्रबंधन की चुनौतियों को लिखिए ।
  • खाद्य प्रसंस्करण आपूर्ति शृंखला प्रबंधन  की चुनौतियों के समाधान को लिखते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये ।  

उत्तर -

    एक आपूर्ति श्रृंखला कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं (किसानों), कंपनी (खाद्य प्रसंस्करणकर्ता) और तैयार उत्पादों के विपणनकर्ताओं के बीच एक नेटवर्क होता है। एक आपूर्ति श्रृंखला किसी उत्पाद या सेवा को ग्राहक तक पहुंचाने के लिए अपनाए जाने वाले चरणों को दर्शाती है। विनिर्मित खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण के विभिन्न चरण इस प्रकार हैं:

                                                                                                                                       

 

आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न चरणों को प्राय: अपस्ट्रीम या डाउनस्ट्रीम के रूप में संदर्भित किया जाता है। 

  • अपस्ट्रीम चरण वह चरण है जिसके द्वारा कच्ची सामग्री संगठन की ओर जाती है। उत्पादन प्रक्रिया के इस चरण में केवल कच्चे माल को खोज और उसका निष्कर्षण किया जाता है।
  • डाउनस्ट्रीम चरण वह चरण है जिसके द्वारा सामग्री (ज्यादातर तैयार उत्पादों के रूप में) संगठन से ग्राहकों की ओर जाती है। 

 

पश्चगामी और अग्रगामी संपर्क (Backward and Forward Linkages):

संपर्क या लिंकेज (Linkages) ऐसी परिघटनाएं है जिनके द्वारा किसी उद्योग की अन्य उद्योगों के उत्पादों की मांग उत्पन्न करने की क्षमता को मापा जाता है।  

  • पश्चगामी संपर्क (Backward Linkage) : इसका आशय कच्चे माल की आपूर्ति के स्रोतों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) के मध्य संपर्क से है। उदाहरण के लिए, एक केचअप विनिर्माता को टमाटर जैसे कच्चे माल की आपूर्ति।
  • अग्रगामी संपर्क (Forward Linkage): इसका आशय भंडारण, सड़क और रेल नेटवर्क आदि जैसी भौतिक अवसंरचनाओं के वितरण नेटवर्क के माध्यम से बाजारों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) के मध्य संपर्क से है।

 

खाद्य प्रसंस्करण आपूर्ति शृंखला  प्रबंधन की चुनौतियां-



  • कनेक्टिविटी की समस्या - गाँव ,शहर और बाज़ारों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी की कमी है।
  • अवसंरचना मे कमी - इससे उत्पादों की छटाई ग्रेडिंग , परिवहन , संचार , मूल्य निर्धारण आदि मे समस्या आती है ।भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़क नेटवर्क का केवल 2% हिस्सा हैं, लेकिन सभी कार्गो का 40% ढोते हैं। 
  • बेहतर तकनीकी का अभाव - इससे वस्तुओं और सेवाओं के रखरखाव और स्मार्ट वर्किंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है । उत्पादों की ट्रैकिंग व ट्रेसिंग नही हो पाती है । 

अन्य चुनौतियां -

समाधान :

  • आधारभूत अवसंरचना का विकास करना।
  • भारत निर्माण , संपदा योजना , मेगा फूड पार्कों की स्थापना , सागर माला योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार बुनियादी अवसंरचनाओं का विकास कर रही है।
  • विभिन्न संस्थाओं और समितियों का  भारत में मादक पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए किये गए प्रयास समन्वय।
  • बाज़ार तक पहुँच  सुनिश्चित करने के लिए गुणात्मक परिवहन साधनों का विकास किया जाना चाहिए । जिससे  डिलिवरी व्यवस्था बेहतर हो सके ।
  • बाज़ार जोखिम प्रबंधन को युक्तियुक्त बनाया जाना चाहिए । 
  • इस क्षेत्र में कौशल विकास के साथ-साथ वित्तीय व्यवस्था को भी उचित और कारगर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • तकनीकी विस्तार और तकनीकों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • स्मार्ट शासन और स्मार्ट प्रशासन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

 

सार्वजनिक और निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । जिससे ग्रेडिंग, सॉर्टिंग, पैकिंग, प्री-कूलिंग, हैंडलिंग सुविधाएं, बीमा, वित्त, परिवहन और प्रसंस्करण सुविधाएं जैसी सुविधाओं के विकास में सहयोग प्राप्त हो सके । 



Q13. भारत में भूमि सुधार के क्षेत्र में वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई, इसके क्या कारण थे? इसे और प्रभावी बनाने के लिए सुझाव दीजिए।

What were the reasons for not achieving the desired success in the field of land reforms in India? Give suggestions to make it more effective.

 

दृष्टिकोण 

  • भूमिका में भूमि सुधार के बारे में लिखिए|
  • पहले कथन को स्पष्ट करने के लिए सरकार के कुछ प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
  • इसके बाद असफलता के कारणों को बताइये।
  • अंत में सुझाव देते हुए उत्तर का समापन कीजिये|

 

उत्तर -      

 

भूमि सुधार का तात्पर्य कृषि भू-जोतों पर हदबंदी लागू करके अर्जित अधिशेष भूमि को छोटे किसानों और भूमिहीन खेतिहरों के मध्य उसे वितरित करने से है। विस्तृत रूप से इसमें स्वामित्व, संचालन, पट्टा, बिक्री और भूमि के उत्तराधिकार संबंधी विनियमन सम्मिलित हैं।



गौरतलब है कि स्वतन्त्रता के पश्चात से ही भूमि सुधारों के लिए सरकार ने व्यापक प्रयास शुरू किया। हालांकि इन प्रयासों से उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो सका। पश्चिम बंगाल, केरल को छोड़कर शेष भारत में नकारात्मक स्थिति बनी रही। भूमि सुधारों की असफलता के पीछे कारणों को इस प्रकार समझ सकते हैं-



  • सरकार द्वारा जो कानून, नियम बनाए गए उनमें कमियाँ विद्यमान थीं, ‘- व्यक्तिगत खेती' को बहुत ही शिथिल रूप से परिभाषित किया गया था, जिसके कारण न केवल वे जो मिट्टी की जुताई करते थे, बल्कि वे भी जो व्यक्तिगत रूप से भूमि की देखरेख करते थे या किसी रिश्तेदार के माध्यम से ऐसा करते थे, या भूमि को पूंजी और ऋण प्रदान करते थे, खुद को काश्तकार कहते थे।
  • इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, बिहार और मद्रास जैसे राज्यों में भूमि के आकार की कोई सीमा नहीं थी जिसे जमींदार की 'व्यक्तिगत खेती' के तहत घोषित किया जा सकता था।
  • भूमि राज्य सूची का विषय होने के कारण क़ानूनों को प्रत्येक राज्य की आवश्यकता के अनुसार लागू नहीं किया जा सका। प्रत्येक राज्य के लिए एक प्रकार के नियम लागू करना सबसे  बड़ी भूल थी।
  • इन सुधारों के प्रति राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव दिखाई देता है। विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में कृषि हमेशा से ही प्राथमिकता वाला क्षेत्र नहीं रहा।
  • व्यक्तिगत स्तर पर लोगों में अपने भूमि के प्रति लगाव ने समेकन में बाधा उत्पन्न किया।ऐसी धारणा कि भूमि उसी की है जो उस पर खेती करता है, ने नकारात्मक प्रभाव डाला।
  • ब्रिटिश काल से चली आ रही जमींदारी प्रवृत्ति ने धारणाओं को बदलने में बाधा उत्पन्न की।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में जनजतिया क्षेत्रों में भूमि अभिलेखों और भूमि प्रशासन की व्यवस्था में व्याप्त अंतर भी भूमि सुधारों के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करते हैं।

 

सुझाव-



  • भूमि पर वास्तविक रूप से खेती करने वाले काश्तकारों के लिए पर्याप्त ऋण और पूंजी का प्रावधान करना।
  • सरकारी विनियमन को अंततः चरणबद्ध रूप से समाप्त किया जाना चाहिए ताकि किसान कृषि उत्पादों को सीधे बाजार में बिक्री कर सके और बाजार शक्तियाँ कृषि उपज की कीमतों को नियंत्रित कर सकें।
  • भूमि पट्टे और संविदात्मक कृषि को प्रोत्साहित करना।
  • सभी राज्यों द्वारा प्रभावी रूप से वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन किया जाना।
  • कृषि उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से उपजाऊ कृषि भूमि का संरक्षण करना।

 

स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार पूर्ण रूप से सफल नहीं रहे। आज भी 5% किसानों के पास 32% भूमि जोत है। किसान की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें दूसरे भूमि सुधार की आवश्यकता है।