Q1: राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्यों और शक्तियों की चर्चा कीजिए।
Discuss the functions and powers of the National Commission of Backward classes.
दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के विषय में बताते हुए भूमिका की शरुआत कीजिए ।
- मुख्य भाग में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के कार्य लिखिए ।
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की शक्तियों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की स्थापना वर्ष 1993 में मंडल मामले के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार किया गया थी।
- इसके पश्चात् , वर्ष 2018 के 102वें संशोधन अधिनियम के अनुसार इस आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया । इसके लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 338-B लाया गया।
- इस संशोधन के साथ आयोग एक वैधानिक निकाय से एक संवैधानिक निकाय बन गया।
संरचना:- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं। जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनकी सेवा की शर्तें और कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के कार्य -
आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं:-
- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए संवैधानिक और अन्य कानूनी सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांच और निगरानी करना और उनके कार्यों का मूल्यांकन करना है।
- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा करना और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच करना है।
- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामाजिक आर्थिक विकास में भाग लेना और सलाह देना तथा संघ या राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना है।
- राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से या ऐसे अन्य समयों पर प्रस्तुत करना जो वह उचित समझे, उन रक्षोपायों के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रदान करना है।
- सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संघ या राज्य द्वारा किए जाने वाले उपायों के बारे में सिफारिशें करना और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपाय करना है।
- सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट कर सकते हैं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की शक्तियां: -
आयोग को अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है। आयोग, किसी भी मामले की जांच करते समय या किसी शिकायत की जांच करते समय, एक मुकदमे की सुनवाई करने वाले सिविल कोर्ट की सभी शक्तियां रखता है, जो विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों के संबंध में हैं :-
- भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को बुलाना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसका परीक्षण करना।
- आवश्यकता होने पर किसी दस्तावेज़ की खोज करना ।
- हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना।
- किसी भी अदालत या कार्यालय से किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की मांग करना।
- दस्तावेजों और गवाहों के परीक्षाण के लिए समन जारी करना
- अन्य किसी मामला में ,जो राष्ट्रपति निर्धारित कर सकता हो।
Q2: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की संरचना और कार्यों की व्याख्या कीजिए। साथ ही इसकी सीमाओं की भी चर्चा कीजिए।
Explain the composition and functions of the National Human Rights Commission. Also discuss its limitations.
दृष्टिकोण:
- भूमिका में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के विषय में लिखिए ।
- मुख्य भाग में आयोग की संरचना और कार्यों को लिखिए ।
- अंत में इसकी सीमाओं पर चर्चा करते हुए उचित निष्कर्ष लिखिए ।
उत्तर :
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एक सांविधिक (संवैधानिक नहीं) निकाय है । इसका गठन संसद में पारित अधिनियम के अंतर्गत हुआ था, जिसका नाम था, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 है ।वर्ष 2006 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया है।
यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है - अर्थात संविधान द्वारा अभिनिश्चित या अंतर्राष्ट्रीय संधियों में निर्मित और भारत में न्यायालय द्वारा अधिरोपित किए जाने वाले जीवन, स्वतंत्रता समता और व्यक्तिगत मर्यादा से संबंधित अधिकार है ।
एनएचआरसी की संरचना-
- आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और पांच सदस्य होते हैं। अध्यक्ष भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए और सदस्य सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश और तीन व्यक्ति होने चाहिए (जिनमें से कम से कम एक महिला होनी चाहिए) जिनका मानवाधिकारों के संबंध में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।
- इन पूर्णकालिक सदस्यों के अलावा, आयोग में सात पदेन सदस्य भी होते हैं- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग बीसी और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त।
- अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा छह सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर की जाती है जिसमें प्रधान मंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
- अध्यक्ष और सदस्य तीन साल की अवधि के लिए या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, तक पद धारण करते हैं। वे पुनर्नियुक्ति के पात्र हैं। उनके कार्यकाल के बाद, अध्यक्ष और सदस्य केंद्र या राज्य सरकार के तहत आगे के रोजगार के लिए पात्र नहीं हैं।
आयोग के कार्य-
आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं:
- मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व- प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना ।
- न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना ।
- जेलों व बंदीगृहों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना ।
- मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना ।
- आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना ।
- मानवाधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन व उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिशें करना ।
- मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना।
- लोगों के बीच मानवाधिकारों की जानकारी फैलाना व उनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरूक करना।
- मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना ।
- ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानवाधिकारों के प्रचार के लिए आवश्यक हों ।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की सीमाएँ:-
- राष्ट्रीय मानव अधिकार के पास जाँच करने के लिये कोई भी विशेष तंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जाँच करने का आदेश देता है।
- राष्ट्रीय मानव अधिकार के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी को निर्णय लागू करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता।
- राष्ट्रीय मानव अधिकार उन शिकायतों की जाँच नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज कराई जाती हैं और इसलिये कई शिकायतें बिना जाँच के ही रह जाती हैं।
- अक्सर सरकार या तो राष्ट्रीय मानव अधिकार की सिफारिशों को पूरी तरह से खारिज कर देती है या उन्हें आंशिक रूप से ही लागू किया जाता है।
- राज्य मानव अधिकार आयोग केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मांग सकते, जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि उन्हें केंद्र के तहत आने वाले सशस्त्र बलों की जाँच करने से रोका जाता है।
- आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति वाली चयन समिति में राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों का प्रतिनिधित्व होता है, जिससे हितों का टकराव होने की आशंका होती है। इसके अतिरिक्त नियुक्ति के मापदंडों का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।
किसी भी व्यक्ति, सरकार या प्राधिकरण को इन अधिकारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने या इन्हें सीमित करने का कोई अधिकार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति जाति, पंथ, नस्ल, लिंग, संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक स्थिति की भिन्नता के बावजूद इन अधिकारों को समान रूप से प्राप्त करता है। मानवाधिकारों और इनके उल्लंघन से जुड़े मुद्दों के प्रति पूरी गंभीरता प्रदर्शित करते हुए भारत में भी इसके संरक्षण के लिए प्रभावशाली कदम सतत रूप से उठाए जाते रहने चाहिये और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अधिक सशक्त बनाना ऐसे उपायों की श्रृंखला में एक महत्त्वपूर्ण चरण होगा।