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SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 6 Model Answer Hindi

Updated : 13th Aug 2022
SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 6 Model Answer Hindi

Q1. उत्तर प्रदेश मे पाये जाने वाले खनिजों व उससे सम्बद्ध उद्योगो  का उल्लेख कीजिये ।

      Mention the minerals and it’s allied industries found in Uttar Pradesh.

दृष्टिकोण:

  • भूमिका में उत्तर प्रदेश में पाये जाने वाले खनिजों व खनिज नीति के संदर्भ में लिखिए ।
  • मुख्य भाग में उत्तर प्रदेश के प्रमुख खनिज व खनिज क्षेत्रों का विवरण दीजिए ।

उत्तर:

उत्तर प्रदेश खनिज की दृष्टि से  निम्न मध्यम श्रेणी का राज्य है। यहाँ विन्ध्यक्रम की शैलों ,बुंदेलखंडी क्षेत्र और हिमालय के निचले भागों में  खनिजों का जमाव पाया जाता है । 1955  में भू-तत्व एवं खनिजकर्म निदेशालय की स्थापना की गई । इसका प्रमुख कार्य प्रदेश में खनिज सम्पदा की खोज एव विकास कर उद्योगों की स्थापना में मदद करना है 1998 खनिज विकास को उद्योग का दर्जा प्रदान किया गया । उत्तर प्रदेश खनिज नीति के तहत 12 जिलों  को खनिज बहुल क्षेत्र घोषित किया गया ।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख खनिज व खनिज क्षेत्र;

  • उत्तर प्रदेश मे बाक्साइट, डायस्पोर, डोलोमाइट, जिप्सम, चूना पत्थर, मैगनेटाइड , , फास्फोराइट, पाइरोफिलाइट, सिलिकासैण्ड, गंधक व कोयला आदि खनिज राज्य के विभिन्न हिस्सों में पाये जाते है|
  • कोयला- उ.प्र. कोयले के भण्डार की दृष्टि से देश में 8वाँ स्थान रखता है। यहां कोयला सोनभद्र के गोंडवाना पत्थरों में पाया जाता है। सोनभद्र के सिंगरौली क्षेत्र से प्राप्त कोयले का उपयोग ओबरा ताप विद्युत गृह और सिंगरौली संयंत्र में किया जाता है।
  • डोलोमाइट- प्रदेश में उच्चस्तर का डोलोमाइट खनिज सोनभद्र में कजराहट क्षेत्र से प्राप्त होता है। इसका उपयोग इस्पात उद्योग में निसारण और रीफ्रैक्टरीज (ताप सहय) बनाने के लिए किया जाता है। बांदा जिले में भी डोलोमाइट प्राप्त होता है।इसका इस्तेमाल  पोर्टलैण्ड सीमेण्ट, प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा तेजाब के निर्माण में किया जाता हैं ।
  • कांच बालू (सिलिका सैण्ड)-कांच बालू के उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का देश मेंआंध्र प्रदेश  के बाद द्वितीय स्थान है। प्रदेश में गंगा तथा यमुना  से कांच बनाने योग्य सिलिका बालू प्राप्त किया जाता है। प्रदेश के प्रयागराज जिले में  शंकरगढ़ एवं यमुना नदी क्षेत्र, चंदौली के चकिया क्षेत्र, झांसी के मुंडारी एवं बाला बहेट क्षेत्र तथा बाँदा व चित्रकूट जिले के लौहगढ़, बरगढ़ एवं धानद्रोल क्षेत्र से कांच बालू प्राप्त होता है ।
  • पोटाश लवण-यह खनिज प्रदेश के प्रयागराज, चंदौली, झांसी तथा बांदा जिलों से प्राप्त किये जाते है ।
  • एण्डोलसाइट-मिर्जापुर व सोनभद्र में यह खनिज अधिक मात्रा में उपलब्ध है। इसमे लौह अंश की मात्रा अधिक होती है ,किन्तु अल्युमिना तथा क्षार अंश कम होता है। इसका इस्तेमाल पोर्सिलेन तथा स्पार्क प्लग उद्योग में किया जाता है ।
  • पाइरोफिलाइट-यह खनिज प्रदेश के झांसी, ललितपुर, महोबा व हमीरपुर जिलों में पाया जाता है। इसका उपयोग सिरेमिक उद्योग में किया जाता है। इससे कीटनाशकों का भी निर्माण होता है।
  • टाल्क या सेलखड़ी-प्रदेश के हमीरपुर और झांसी जिलों में सेलखड़ी खनिज के भंडार उपलब्ध हैं। इसे  सोप स्टोन के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, टैल्कम पाउडर, कीटनाशक पाउडर, टेक्सटाइल तथा कागज आदि के निर्माण में किया जाता है।
  • फायर क्ले  (नॉनप्लास्टिक)-प्रदेश में मिर्जापुर जिले के बांसी, मकरी एवं खोह क्षेत्र में गोंडवाना युग की चट्टानों में फायर क्ले के निक्षेप पाए गए हैं।
  • रॉक फॉस्फेट्स- ललितपुर के दुरमाला, किमाई, मसराना, माल देवता और चमसारी में रॉकफॉस्फेट के अपार भण्डार पाये गए हैं।यह हाल ही में बाँदा से भी प्राप्त हुआ है।  इस खनिज का उपयोग उर्वरक बनाने मे किया जाता है ।
  • सोना-प्रदेश में कुछ मात्रा में सोना शारदा और रामगंगा नदियों की रेत में पाया जाता है। नवीन खोजों के अनुसार ललितपुर जिले के भीखमपुर क्षेत्र तथा सोनभद्र के हरदी क्षेत्र में स्वर्ण खनिज प्राप्त होने की संभावना है।
  • तांबा-प्रदेश के ललितपुर जिले का सोनराई क्षेत्र तांबा उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है। तांबा मुख्यतः आग्नेय एवं परतदार चट्टानों मे पाया जाता है ।
  • यूरेनियम-प्रदेश के ललितपुर जिले में यूरेनियम के सीमित भंडारों की खोज की गई है।
  • संगमरमर-संगमरमर एवं अन्य इमारती पत्थर मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में पाये जाते हैं।
  • एस्बेस्टस-प्रदेश के मिर्जापुर व बड़ागांव क्षेत्र ,झांसी में एस्बेस्टस पाया जाता है। इसका  उपयोग मुख्य रुप से सीमेण्ट निर्माण एवं विद्युत उपकरणों में किया जाता है। इसमें ताप सहन करने एवं रासायनिक क्रिया से अधिक प्रभावित न होने की क्षमता होती है।
  • जिप्सम-जिप्सम राज्य के झाँसी तथा हमीरपुर जिलों में पाया जाता है। इसका उपयोग मुख्यतः सीमेन्ट,गंधक तथा अमोनियम सल्फेट नामक रासायनिक पदार्थ के निर्माण में किया जाता है।

 


 

Q2. उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए ।

      Give a brief description of different types of soils found in Uttar Pradesh.

दृष्टिकोण:

  • भूमिका में उत्तर प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के बारे मे लिखिए ।
  • उत्तर प्रदेश मे पायी जाने वाली मिट्टियों की विशेषताओं के साथ उसके क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर-मध्य में अवस्थित एक सीमान्त राज्य है, जिसकी ग्लोब पर स्थिति 23°52° उत्तरी अक्षांश से 30°24' उत्तरी अक्षांश तथा 77º3' पूर्वी देशांतर से 84º39' पूर्वी देशांतर' के मध्य है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लम्बाई 650 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई 240 किमी है। इसका सम्पूर्ण क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी है, जो कि भारत के सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 7.33 प्रतिशत है।

               उत्तर प्रदेश की सीमाओं को यदि प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाये तो उत्तर में हिमालय की शिवालिक श्रेणियाँ (उत्तराखण्ड और नेपाल में फैली हुई), पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिण में यमुना नदी और विन्ध्य श्रेणियाँ तथा पूर्व में गण्डक नदी है।

               भू-गर्भिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारत के प्राचीनतम 'गोंडवाना लैण्ड महाद्वीप' का एक भू-भाग है। प्रदेश का दक्षिणी पठारी भाग वास्तव में प्रायद्वीपीय भारत का उत्तर की ओर निकला हुआ भाग है जिसका निर्माण कैम्ब्रियन युग में विन्ध्यन क्रम की शैलों से हुआ है । विन्ध्यन क्रम की चट्टानों में जीवाश्मीय अवशेषों का अभाव होता है।

 भूमि की बनावट के आधार पर उत्तर प्रदेश को तीन भौतिक भागों में विभाजित किया गया है-

  • भाभर एवं तराई क्षेत्र की मिट्टी
  • मध्य के मैदानी क्षेत्र की मिट्टी
  • दक्षिण के पहाड़ी पठारी क्षेत्र के मिट्टी

भाभर एवं तराई क्षेत्र की मृदायें:-

  • प्रदेश का उत्तरी भाग  अर्थात भाभर  क्षेत्र हिमालयी नदियों के भारी निक्षेपों से निर्मित है । यंहा की मिट्टी में कंकड़ो ,पत्थरों तथा मोटे बालुवा कणों की अधिकता है।इस कारण  जल नीचे चला जाता है । इस क्षेत्र में कृषि कार्य करना आसान नहीं है । यहां पर ज्यादातर झाड़ियां एवं वन पाए जाते है।
  • जबकि महीन कणों के निक्षेप से निर्मित तराई क्षेत्र की मृदा जो  समतल दलदली, नम और उपजाऊ होती है,में  गन्ने एवं धान की पैदावार अच्छी होती है।

मध्य मैदानी क्षेत्र की मृदायें:-

  • मध्य भाग में स्थित विशाल गंगा-यमुना मैदान प्लास्टोसीन युग से आज तक विभिन्न नदियों के निक्षेपों  से निर्मित है।  इस मैदान में पाई जाने वाली मृदा को जलोढ़ ,कछारी मृदा भी कहते है जो  कांप  मिट्टी , कीचड़, एवं बालू से निर्मित है ।
  • इसमें पोटाश एवं चूना प्रचुर मात्रा में मिलता है तथा  फास्फोरस, नाइट्रोजन और जीवांश का अभाव होता है।
  • इस मैदान की मृदा को दो वर्गों में विभाजित किया गया है- खादर या कछारीय या नवीन जलोढ़ मृदा तथा बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा। इस क्षेत्र में लवणीय, क्षारीय, मरुस्थलीय, तथा काली मृदाएँ  भी पाई जाती है।
  • खादर मृदा:- यह  मृदा नदियों द्वारा प्रत्येक बाढ़ के साथ परिवर्तित होती रहती है । उसे खादर या कछारी या नवीन जलोढ़ मृदा कहा जाता है।
  • यह मृदा हल्के भूरे रंग की, छिद्र युक्त महीन कणों वाली एवं जल धारण करने की क्षमता वाली होती है।  इनमे चूना, पोटाश, मैग्नीशियम तथा जैव तत्वों की मात्रा अधिक होती है । इसे बलुआ या सिल्ट बलुआ,दोमट आदि नामों से भी जाना जाता है।इस मिट्टी की उर्वरता शक्ति अधिक होती है
  • बांगर मृदा:- गंगा -यमुना मैदानी क्षेत्र का वह भाग जहां नदियों के बाढ़ का जल नही  पहुँच पाता है वहां की मृदा को बांगर या पुरानी जलोढ़ मृदा कहा जाता है।  इसे उपहार मृदा, दोमट, मटियार आदि नामों से जाना जाता है । इस क्षेत्र की मिट्टियां परिपक्व तथा अधिक गहरी जोत वाली होती है ।निरंतर कृषि उपयोग में आने के कारण इनकी उर्वरा शक्ति क्षीण होती जाती है इसलिये इसमे खाद देने की आवश्यकता होती है।
  • लवणीय तथा क्षारीय मृदा:- प्रदेश के बांगर मृदा वाले क्षेत्र में भूमि के समतल होने और जल निकासी का उचित प्रबंध न होने, नहरों से सिंचाई किये जाने,वर्षा  की कमी,गहरी जुताई करने ,उर्वरको के लगातार प्रयोग आदि कारणों से लगभग 10 प्रतिशत भूमि ऊसर हो चुकी है। इस प्रकार की मृदा प्रदेश के अलीगढ़,मैनपुरी,कानपुर, उन्नाव,एटा,इटावा,रायबरेली,सुल्तानपुर, प्रतापगढ़,जौनपुर, प्रयागराज आदि जिलों में पाई जाती है इसे रेह ,बंजर तथा कल्लर नामों  से भी जाना जाता है।
  • काली मृदा (रेगुर):- प्रदेश के पश्चिमी जिलों तथा बुंदेलखंड क्षेत्र में कही -कही  काली मृदा भी पाई जाती है। जिसे स्थानीय भाषा में कपास मृदा कहा जाता है ।

दक्षिण के पहाड़ी-पठारी क्षेत्र की मृदाएं-

  • प्रदेश के दक्षिणी भाग में प्री-कैम्ब्रियन युग की चट्टानों का बाहुल्य है। इस क्षेत्र में ललितपुर, झांसी, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बाँदा, चित्रकूट,सोनभद्र और चंदौली  आदि जिले सम्मिलित है। यहां कई प्रकार की मृदाएं पायी जाती है। जैसे -लाल मिट्टी, परवा, मार(माड़), राकर, भोंटा आदि।
  • लाल मृदा- यह मृदा दक्षिणी इलाहाबाद, झांसी, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, चंदौली जिलों मे पायी जाती है। इस मृदा का निर्माण विंध्य चट्टानों के टूटने से हुआ है। इसमे नाइट्रोजन, फास्फोरस, चूना की कमी तथा लौह अंश की अधिकता पायी जाती है। अतः यहाँ दलहन व तिलहन की खेती की जाती है।
  • परवा मृदा- इसे पड़वा भी कहा जाता है। यह हमीरपुर, जालौन, बीहड़ो में पायी जाती है। यह हल्के लाल-भूरे रंग की बलुई-दोमट मृदा है जिसमे जैव तत्वों की कमी होती है। इसमें  ज्वार(खरीफ) और चना(रबी) की फसलें उगाई जाती है।
  • मार(माड़) मृदा- यह मृतिका मृदा है जिसका रंग काला होता है। इसमे कृषि कार्य कठिन  होता है क्योंकि जल की कमी होती है और जल पाने पर यह चिपचिपी हो जाती है। अतः इसमे अल्पावधि वाली फसले उगाई जाती है। यह पश्चिमी जिलों में पाई जाती है।