Q1. भारत में भूमि सुधार के क्षेत्र में वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई, इसके क्या कारण थे? इसे और प्रभावी बनाने के लिए सुझाव दीजिए।
What were the reasons for not achieving the desired success in the field of land reforms in India? Give suggestions to make it more effective.
दृष्टिकोण:
· भूमिका में भूमि सुधार के बारे में लिखिए।
· पहले कथन को स्पष्ट करने के लिए सरकार के कुछ प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
· इसके बाद असफलता के कारणों को बताइये।
· अंत में सुझाव देते हुए उत्तर का समापन कीजिये।
उत्तर:
भूमि सुधार का तात्पर्य कृषि भू-जोतों पर हदबंदी लागू करके अर्जित अधिशेष भूमि को छोटे किसानों और भूमिहीन खेतिहरों के मध्य उसे वितरित करने से है। विस्तृत रूप से इसमें स्वामित्व, संचालन, पट्टा, बिक्री और भूमि के उत्तराधिकार संबंधी विनियमन सम्मिलित हैं।
गौरतलब है कि स्वतन्त्रता के पश्चात से ही भूमि सुधारों के लिए सरकार ने व्यापक प्रयास शुरू किया। हालांकि इन प्रयासों से उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो सका। पश्चिम बंगाल, केरल को छोड़कर शेष भारत में नकारात्मक स्थिति बनी रही। भूमि सुधारों की असफलता के पीछे कारणों को इस प्रकार समझ सकते हैं-
· सरकार द्वारा जो कानून, नियम बनाए गए उनमें कमियाँ विद्यमान थीं, ‘- व्यक्तिगत खेती' को बहुत ही शिथिल रूप से परिभाषित किया गया था, जिसके कारण न केवल वे जो मिट्टी की जुताई करते थे, बल्कि वे भी जो व्यक्तिगत रूप से भूमि की देखरेख करते थे या किसी रिश्तेदार के माध्यम से ऐसा करते थे, या भूमि को पूंजी और ऋण प्रदान करते थे, खुद को काश्तकार कहते थे।
· इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, बिहार और मद्रास जैसे राज्यों में भूमि के आकार की कोई सीमा नहीं थी जिसे जमींदार की 'व्यक्तिगत खेती' के तहत घोषित किया जा सकता था।
· भूमि राज्य सूची का विषय होने के कारण क़ानूनों को प्रत्येक राज्य की आवश्यकता के अनुसार लागू नहीं किया जा सका। प्रत्येक राज्य के लिए एक प्रकार के नियम लागू करना सबसे बड़ी भूल थी।
· इन सुधारों के प्रति राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव दिखाई देता है। विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में कृषि हमेशा से ही प्राथमिकता वाला क्षेत्र नहीं रहा।
· व्यक्तिगत स्तर पर लोगों में अपने भूमि के प्रति लगाव ने समेकन में बाधा उत्पन्न किया।ऐसी धारणा कि भूमि उसी की है जो उस पर खेती करता है, ने नकारात्मक प्रभाव डाला।
· ब्रिटिश काल से चली आ रही जमींदारी प्रवृत्ति ने धारणाओं को बदलने में बाधा उत्पन्न की।
· पूर्वोत्तर राज्यों में जनजतिया क्षेत्रों में भूमि अभिलेखों और भूमि प्रशासन की व्यवस्था में व्याप्त अंतर भी भूमि सुधारों के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करते हैं।
सुझाव-
· भूमि पर वास्तविक रूप से खेती करने वाले काश्तकारों के लिए पर्याप्त ऋण और पूंजी का प्रावधान करना।
· सरकारी विनियमन को अंततः चरणबद्ध रूप से समाप्त किया जाना चाहिए ताकि किसान कृषि उत्पादों को सीधे बाजार में बिक्री कर सके और बाजार शक्तियाँ कृषि उपज की कीमतों को नियंत्रित कर सकें।
· भूमि पट्टे और संविदात्मक कृषि को प्रोत्साहित करना।
· सभी राज्यों द्वारा प्रभावी रूप से वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन किया जाना।
· कृषि उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से उपजाऊ कृषि भूमि का संरक्षण करना।
स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार पूर्ण रूप से सफल नहीं रहे। आज भी 5% किसानों के पास 32% भूमि जोत है। किसान की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें दूसरे भूमि सुधार की आवश्यकता है।
Q2. आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख कीजिये।
Mention important provisions of the Disaster Management Act 2005.
दृष्टिकोण:
· उत्तर की शुरुआत आपदा प्रबन्धन अधिनियम -2005 के बारे में बताते हुए कीजिये।
· पुनः इस अधिनियम के प्रमुख बिन्दुओं को विस्तारपूर्वक बताते हुए उत्तर को विस्तारित कीजिये।
· अंत में सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उत्तर का समापन कीजिये।
उत्तर :
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में भारत सरकार द्वारा 'आपदाओं के कुशल प्रबंधन और शमन रणनीतियों की तैयारी, क्षमता निर्माण' के लिए पारित किया गया था। हालांकि यह जनवरी 2006 में लागू हुआ।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रमुख बिंदु:
नोडल एजेंसी:
· यह अधिनियम गृह मंत्रालय को समग्र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन को संचालित करने के लिये नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है।
· संस्थागत संरचना: यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तरों पर संस्थानों की एक व्यवस्थित संरचना बनाए रखता है।
राष्ट्रीय स्तर की महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(NDMA)
· दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया,जिसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) भी बनाया गया और संबद्ध मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की स्थापना की परिकल्पना भारत में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने और उसके प्रति एक समग्र व एकीकृत दृष्टिकोण कार्यान्वित करने हेतु की गई ।
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति:
· आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 8 के अंतर्गत राष्ट्रीय प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया गया है।
· इस समिति को आपदा प्रबंधन हेतु समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने तथा राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान:
· यह संस्थान प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षण और क्षमता विकास कार्यक्रमों को संचालित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल:
· यह आपदाओं के समय विशेषीकृत कार्यवाही करने में सक्षम एक प्रशिक्षित पेशेवर यूनिट है।
राज्य और ज़िला स्तरीय संस्थाएँ:
· राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(SDMA)
· यह संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में SDMA राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये नीतियाँ और योजनाएँ तैयार करता है ।
· यह राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय, आपदा के शमन के लिये तत्पर रहने के उपायों और राज्य के विभिन्न विभागों की योजनाओं की समीक्षा के लिये उत्तरदायी है ताकि रोकथाम, तैयारी और शमन उपायों का समेकन सुनिश्चित हो सके, आदि।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(DDMA)
· डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट/डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर/डिप्टी कमिश्नर अध्यक्ष के रूप में इसका प्रमुख होता है ।
· इसके अलावा स्थानीय प्राधिकरण का निर्वाचित प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होता है, उन जनजातीय क्षेत्रों को छोड़कर जहां स्वायत्त ज़िले की ज़िला परिषद का मुख्य कार्यकारी सदस्य सह-अध्यक्ष नियुक्त हो आदि।
· इसके अलावा उन ज़िलों में जहाँ ज़िला परिषद मौजूद है, वहाँ इसका अध्यक्ष DDMA का सह- अध्यक्ष होगा आदि।
वित्त:
· इस अधिनियम में आपातकालीन प्रतिक्रिया, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund) और राज्य तथा ज़िला स्तर पर भी इसी तरह की निधि सृजन के लिये वित्तीय तंत्र का प्रावधान किया गया है।
नागरिक और आपराधिक दायित्व:
· इस अधिनियम के अनेक अनुभागों के उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान किया गया है।
· आपदा के समय जारी आदेशों का पालन करने से इनकार करने वाले व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 51 के अंतर्गत एक वर्ष तक के कारावास या जुर्माना या दोनों सज़ा एक साथ हो सकती है और यदि इस आदेश के अनुपालन से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उत्तरदायी व्यक्ति को दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने आपदाओं से निपटने की दिशा में सरकारी कार्यों की योजना को तेज किया है, लेकिन जब तक इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं किया जाता है, तब तक कागज़ पर विस्तृत योजनाएँ बनाने मात्र से उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती है। यदि प्रभावी क्रियान्वयन अमल में लाया जाता है परिणाम सकारात्मक होंगे।
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