Q1- भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में भारत के समुद्री संसाधनों का संक्षिप्त विवरण दीजिए ?
Give a brief account of the marine resources of India in the Exclusive Economic Zone
दृष्टिकोण -
· भूमिका में भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र को लिखिए।
· अनन्य आर्थिक क्षेत्र किसे कहते है को स्पष्ट कीजिए।
· अनन्य आर्थिक क्षेत्र में भारत के समुद्री संसाधनो का विवरण दीजिए।
· इसके सकारात्मक पक्ष को लिखते हुए उचित निष्कर्ष लिखिए।
उत्तर :
भारत सरकार ने 25 अगस्त 1976 को समुद्री क्षेत्र अधिनियम बनाया जो 15 जनवरी 1977 को लागू हुआ। इस क्षेत्र में भारत को समुद्र में जीवित तथा अजीवित दोनों ही संसाधनों के अन्वेषण तथा दोहन द्वारा उनका उपयोग करने का विशेष कानूनी अधिकार प्राप्त है। इस अनन्य समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा तथा राष्ट्रीय विधियों का प्रवर्तन और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिये भारतीय तटरक्षक की स्थापना की गई थी। भारत ने जून 1995 में संयुक्त राष्ट्र की अन्तरराष्ट्रीय समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओसी) पर हस्ताक्षर किए और साथ ही इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसबीए) और कमीशन ऑन द लिमिट्स ऑफ कांटीनेंटल शेल्फ (सीएलसीएस) में भी शामिल हुआ। भारत का अनन्य क्षेत्र अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूहों और लक्षदीप द्वीपसमूहों के समुद्रतट समूहों सहित भारत की कुल समुद्री तटरेखा लगभग 7500 किलोमीटर है, जिसके कारण भारत का अनन्य आर्थिक क्षेत्र लगभग 23.7 लाख वर्ग किलो मीटर है। भारत का ईईज़ेड विश्व के बारहवें सबसे बड़े अनन्य आर्थिक क्षेत्र में आता है।
अनन्य आर्थिक क्षेत्र
· यूएनसीएलओसी के अनुच्छेद 76 के प्रावधानों के अनुसार किसी देश का अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) उस देश की समुद्री तटरेखाओं से 200 समुद्री मील (370 किलोमीटर) तक विस्तारित समुद्री क्षेत्र होता है।
· अलग-अलग देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) की लंबाई उनके भूगोल के अनुसार अलग-अलग हो सकती है।
· यदि किसी देश का ईईजेड किसी दूसरे देश के ईईज़ेड पर अतिव्यापित हो रहा है तो ऐसी स्थिति में देशों के बीच वास्तविक ईईज़ेड क्षेत्र का बँटवारा किया जाता है।
· प्रत्येक देश अपने ईईज़ेड में समुद्री संसाधनों के अन्वेषण, दोहन, विकास, प्रबन्धन एवं संरक्षण करने का पूर्ण अधिकारी होता है।
अनन्य आर्थिक क्षेत्र में भारत के समुद्री संसाधन-
· खनिज संसाधन - भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में हाइड्रोकार्बनों के प्रचुर भण्डारों के साथ-साथ इलेमनाइट, रुटाइल, ज़िरकॉन, मोनाज़ाइट एवं मेग्नेटाइट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के भण्डार भी मिलते हैं।
· खाद्य संसाधन - कुल जनसंख्या के लगभग 30 प्रतिशत लोगों के लिए महासागर खाद्य पदार्थों का प्रमुख स्रोत साबित हो सकते हैं। महासागर प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का असीम स्रोत हैं। महासागर में उपलब्ध शैवाल यानी काई भी एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। कुछ शैवालों में आयोडिन मौजूद होता है, तो कई शैवालों का उपयोग उद्योगों में भी किया जाता है।
· ऊर्जा संसाधन -महासागर से असीमित ऊर्जा के भंडार है । महासागरों से नवीकरणीय और परंपरागत ऊर्जा का एक अच्छा स्रोत है । समुद्री तापीय ,ज्वारभाटे और लहरों से ऊर्जा की प्राप्ति की जा सकती है ।समुद्र के ऊपरी सतह का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस होता है । इसपर फ्लोटिंग सोलर पैनल लगाकर ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है ।
· समुद्री जीव संसाधन - समुद्री वनस्पतियों का उपयोग भोजन, जंतुओं का चारा, औषधियों का निर्माण, उर्वरक, श्रृंगार, प्रसाधन, रंजको का निर्माण इत्यादि में किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण समुद्री वनस्पतियों में आरेम, बलेडररैक, डलस, हाइजिकी, कैल्प, कोम्बू, नोरी तथा बाकेम है।
· समुद्री क्षेत्र में विविध प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं। जिनका उपयोग भोजन, औषधियों का निर्माण, श्रृंगार प्रसाधन का निर्माण जैसे कार्यों में किया जाता है। प्रवाल भित्तियां कैल्शियम युक्त समुद्री जीवो के अवशेषों से निर्मित समुद्री संरचना एवं विशिष्ट स्थलाकृतियां हैं। प्रवाल भित्तियां उथले उष्णकटिबंधीय समुद्र में परिवर्तनशील, रंगीन एवं मनमोहक पारितंत्र का निर्माण करती हैं।
भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र मे अपार संभावनाओ को देखते हुए भारत सरकार द्वारा डीप ओशन निशान की शुरुआत की गई । इससे ब्लू इकॉनमी को बल मिलेगा तथा आर्थिक विकास के साथ साथ सामाजिक समावेश और आजीविका के संरक्षण या सुधार को बढ़ावा मिलेगा और महासागरों और तटीय क्षेत्रों की पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होगी ।
Q2- भारत के नगरों में विशेषतः महानगरों में मलिन बस्तियों की विकराल समस्या है।इस संदर्भ मे मलिन बस्तियों के दुष्परिणामों पर चर्चा करते हुए सुधार के उपायों पर चर्चा कीजिए।
There is a serious problem of slums in the cities of India, especially in the metropolitan cities. In this context, discuss the measures to tackle the challenge while discussing the ill effects of slums.
दृष्टिकोण -
· भूमिका में कुछ आंकड़ों के माध्यम से मलिन बस्तियो की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
· मलिन बस्तियों के दुष्परिणामों को लिखिए।
· मलिन बस्तियों के सुधार हेतु सुझाव को प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर -
भारत में नगरीय जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत और महानगरों का लगभग 30 प्रतिशत मलिन बस्तियों में रहता है। जनगणना 1991 के अनुसार देश की लगभग 5 करोड़ नगरीय जनसंख्या मलिन बस्तियों में रहती थी।
भारतीय महानगरों की मलिन बस्तियों में निवास करने वाले व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यधिक खराब या निकृष्ट और पर्यावरण अस्वास्थ्यकर होता है। अल्पाय, निरक्षरता, अकुशलता आदि के कारण उनमें अनेक सामाजिक बुराइयां जैसे शराब पीना, जुआ खेलना, चोरी, हत्या आदि अनुषंगी बन जाती है। मलिन बस्तियों में मकान अव्यवस्थित, अधिक सघन, छोटे-छोटे कमरों और प्रायः कच्चे एवं झोपड़ी के रूप में पाए जाते हैं। जैसे- मुम्बई महानगर के विभिन्न भागों में बिखरी हुई मलिन बस्तियों में लगभग 44 प्रतिशत जनसंख्या का निवास हैं
जिस्टस और हालबर्ट ने मलिन बस्ती की परिभाषा इस प्रकार दी- “एक मलिन बस्ती निर्धन लोगों तथा मकानों का क्षेत्र है। यह संक्रमण का एवं गिरावट का क्षेत्र है। यह असंगठित क्षेत्र होता है, जो मानव अपशिष्ट से परिपूर्ण होता है। यह अपराधियों, दोषयुक्त, निम्न एवं त्यक्त लोगों के लिए सुविधाजनक क्षेत्र होता है।”
मलिन बस्तियों के दुष्परिणाम (Bad Effects of Slums)
· स्वास्थ्य में ह्रास- मलिन बस्तियों में सफाई, शुद्ध पेयजल, आदि के अभाव तथा प्रदूषित पर्यावरण के कारण यहां अनेक प्रकार की बीमारिया फैलती रहती हैं।
· कार्य क्षमता में ह्रास- प्रदूषित पर्यावरण के कारण मलिन बस्तियों के निवासियों का स्वास्थ्य प्रायः अच्छा नहीं रहता और वे किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होते रहते हैं। स्वास्थ्य अच्छा न रहने और विश्राम के लिए पर्याप्त एवं उपयुक्त स्थान के अभाव में श्रमिकों की कार्य क्षमता घट जाती है। व्यापक अशिक्षा के कारण अधिकांश श्रमिक अकुशल होते हैं
· नैतिक पतन तथा अपराध में वृद्धि- दूषित पर्यावरण, अशिक्षा तथा असामाजिक तत्वों की संगति आदि के कारण बहुत से बालक और युवक अपराधी बन जाते हैं। मलिन बस्तियों में चोरी, शराब पीने, जुआ खेलने, वेश्यावृति, हत्या, बाल अपराध, बलात्कार आदि सामाजिक बराइयां फैली होती हैं जिसके परिणामस्वरूप इसके निवासियों का नैतिक पतन होता है ।
· जीवन-स्तर में ह्रास- आय कम होने तथा भौतिक एवं सामाजिक रूप से प्रदूषित पर्यावरण में रहते हुए लोगों का जीवन-स्तर अत्यंत निम्न और दयनीय हो जाता है। अल्पायु के कारण अधिकांश लोग परिवार की दैनिक आवश्यक आवश्यकताओं को भी पूरा करने में असमर्थ होते हैं।
· पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन- मलिन बस्ती के निवासी श्रमिकों को मनोरंजन, विश्राम आदि की आवश्यक सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं जिससे वे मानसिक चिन्ता, बेचैनी, निराशा आदि के शिकार हो जाते हैं और मादक वस्तओं का सेवन करने लगते हैं। इससे पारिवारिक कलह और विघटन हो जाता है ।
मलिन बस्तियों के सुधार हेतु सुझाव -
महानगरों में आवास तथा मलिन बस्तियों की समस्या को हल करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों, नगर निगमों, वित्त एवं बीमा कम्पनियों तथा स्वैच्छिक सामाजिक संगठनों द्वारा समय- –समय पर प्रयास किये जाते रहे हैं। महानगरों में मलिन बस्तियों की समस्याओं के निराकरण हेतु कतिपय सुझाव निम्नांकित हैं:
· विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था - बड़े-बड़े नगरों के रूप में जनसंख्या का संकेद्रण केन्द्रीकृतअर्थव्यवस्था का परिणाम है। उद्योग, व्यापार आदि आर्थिक क्रियाओं के कुछ विशिष्ट स्थानों (महानगरों) में केन्द्रीभूत हो जाने के कारण इन स्थलों पर जनसंख्या पूंजीभूत (संकेन्द्रित) होती रहती है।
· बहुमुखी ग्रामीण विकास - महानगरों में आवासीय गृहों की कमी और मलिन बस्तियों के विकास के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी कारक है जिससे ग्रामों से नगरों की ओर जनसंख्या का स्थानांतरण होता है । इसको रोकने के लिए बहुमुखी ग्रामीण विकास की आवश्यकता है ।
· निम्न आय वर्ग के लिए कालोनियों का निर्माण - मलिन बस्तियों की समस्या से ऐसी आवास योजनाओं के क्रियान्वयन की महती आवश्यकता है जिससे मलिन बस्तियों का सुधार किया जा सके । सड़कों तथा नालियों , पेयजल, औषधालय, स्कूल, खेल के मैदान, पार्क आदि की सुविधाएं उपलब्ध कराकर मलिन बस्तियों के निवासियों के जीवन-स्तर में सुधार लाया जा सकता है।
· ऋण की समस्या - लघु भवनों के निर्माण तथा पुराने भवनों की मरम्मत के लिए आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करने की व्यवस्था की जा सकती है। आसान किस्तों पर सुगमता से ऋण प्राप्त हो जाने पर अनेक परिवार स्वयं ही आवासीय समस्याओं को दूर करने में समर्थ बनाना होगा ।
मलिन बस्तियों के दुष्परिणामों को देखते हुए सरकार द्वारा इनमें अपेक्षित बदलाव लाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे है जैसे पेयजल ,स्वास्थ्य, आवास,शिक्षा आदि की व्यवस्था की जा रही है ।इससे न सिर्फ सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने मे आसानी होगी बल्कि सामाजिक न्याय के माध्यम से हाशिये पर खड़े लोगो को मुख्यधारा मे आने का अवसर भी प्राप्त होगा ।
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