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SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 2 Model Answer Hindi

Updated : 9th Aug 2022
SHIKHAR MAINS 2022 - DAY 2 Model Answer Hindi

Q1. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिन्होंने शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की। साथ ही शीत युद्ध के तनाव को कम करने वाले कारकों पर भी चर्चा कीजिए।

Explain the factors that formed the background of the Cold War after the Second World War. Also discuss the factors that reduced the tension of the Cold War.

दृष्टिकोण :

  • सर्वप्रथम, भूमिका में शीत युद्ध का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
  • तत्पश्चात,द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिन्होंने शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की।
  • इसके बाद शीत युद्ध के तनाव को कम करने वाले कारकों पर भी चर्चा कीजिए। 
  • अंत में निष्कर्षतः एक या दो पंक्तियाँ लिखते हुए उत्तर का समापन कीजिए।  

उत्तर:-

                              1945-1991 के काल के दौरान अमेरिका तथा सोवियत संघ के नेतृत्व में विचारधारा एवं नेतृत्व को लेकर राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में टकराव एवं प्रतिस्पर्धा के रूप में शीत युद्ध को परिभाषित किया जा सकता है। रूस के नेतृत्व में साम्यवादी और अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी देश दो खेमों में बंट गए थे। इन दोनों गुटों में आपसी प्रत्यक्ष युद्ध कभी नहीं हुआ लेकिन संघर्ष एवं तनाव की स्थिति बनी रही। 

शीत युद्ध के लक्षण दूसरे विश्व युद्ध के प्रारंभ से ही दिखने लगे थे। दोनों महाशक्तियां अपने अपने संकीर्ण स्वार्थों को लेकर युद्ध लड़ रही थी। रूस एवं अमेरिका के पारस्परिक मतभेदों ने शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की जिन्हे निम्नलिखत कारणों से समझा जा सकता है-

  • याल्टा सम्मेलन- सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न किया जाना। 
  • पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा को लेकर टकराव की स्थिति। 
  • परस्पर अविश्वास- 1939 पूर्व(प्रथम विश्वयुद्ध से साम्यवादी रूस का अलग होना, फासीवादी शक्तियों के तुष्टीकरण से रूस में संदेह आदि) तथा 1939-45(जर्मनी-रूस अनाक्रमण समझौता, पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की मजबूत स्थिति,हिटलर के रूस आक्रमण के समय द्वितीय फ्रंट का ना खोलना आदि) 
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की परिस्थितियां। 1945 एवं 1946 की परिस्थितियों ने शीत युद्ध को सतह पर उभारने का कार्य किया जैसे स्टालिन एवं चर्चिल के कथन,1947 में ट्रूमैन डॉक्ट्रिन इत्यादि।
  • पोटसडम सम्मेलन- पोलैंड तथा पूर्वी यूरोपीय देशों में चुनाव को लेकर साम्यवादी रूस से तनाव बढ़ना। 
  • अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने की घटना को रूस द्वारा अपने विरुद्ध माना जाना। 
  • 1946  के दौरान पूर्वी यूरोपीय देशों पर सोवियत संघ द्वारा पकड़ मजबूत करना, साथ ही यूनान एवं तुर्की में भी साम्यवाद एवं लोकतांत्रिक शक्तियों में संघर्ष। 
  • 1948-49 में बर्लिन नाकेबंदी के साथ शीत युद्ध को लेकर जो भी संशय था वह छंट गया और यह स्पष्ट हो गया की दुनिया एक नए युग में प्रवेश कर गई है।

शीत युद्ध के तनाव को कम करने वाले कारक:

1953-1962 का चरण:- 

  • इस चरण को  शीत युगीन तनावों को कम करने और तनाव को बढ़ाने दोनों ही दृष्टिकोण से जाना जाता है-
  • तनाव को कम करने में कुछ कारकों की भूमिका थी जैसे 1953 में स्टालिन की मृत्यु तथा  ख़्रुश्चेव के द्वारा पूंजीवादी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात करना।
  • अमेरिका ने सिनेटर मैकार्थी को साम्यवादी विरोधी नीतियों के लिए जाना जाता था, इसका भी अमेरिकी राजनीती पर प्रभाव कम हुआ। दोनों ही गुट युद्ध के विनाशक स्वरूप को समझ रहे थे और आर्थिक दबाव भी महशूस कर रहे थे।
  • इसी पृष्ठभूमि में तनाव को कम करने के कुछ कदम उठाये गए जैसे-
  • USSR के द्वारा फ़िनलैंड से सैनिक अड्डों को हटाना, UNO में 16 राष्ट्रों के प्रवेश पर से वीटो को हटाना,ऑस्ट्रिया के एकीकरण पर इन शर्तों के साथ सहमत होना कि जर्मनी में उसका विलय नहीं होगा।
  • 1953 में कोरिया के मुद्दे पर समझौता,1954 में वियतनाम के मुद्दे पर समझौता इत्यादि।
  • हालाँकि इस चरण में कुछ तनाव बढ़ाने वाले उदाहरण भी थे जैसे,1955 में वार्सा पैक्ट पर समझौता, 1961 में बर्लिन दीवार का निर्माण, 1962 में क्यूबा मिशाइल संकट इत्यादि। 

1963-1969 का चरण: (तनाव शैथिल्य):-

  • अमेरिका और USSR के बीच हॉटलाइन की स्थापना। 
  • 1963 में PTBT की स्थापना। 
  • 1967 में नाभिकीय बम के प्रसार को रोकने तथा नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को लेकर एनपीटी हुई।
  • 1972 में अमेरिका एवं USSR के बीच SALT-1 नामक समझौता हुआ। पहली बार शस्त्रों की संख्या को सीमित करने के लिए दोनों महशक्तियों में सहमति बनी।
  • 1975 में हेलसिंकी सम्मेलन हुआ। यूरोपीय देशों की सीमाओं को बनाये रखने पर सहमति हुई। और साम्यवादी देशों में मानवाधिकारों के सम्मान पर सहमति बनी।
  • इसी वर्ष वियतनाम में गृहयुद्ध समाप्त हुआ।
  • 1970 के दशक में अमेरिका एवं चीन के संबंधों में उत्तरोत्तर सुधार हुआ।
  • हालाँकि इस चरण में भी तनाव को बढ़ाने वाली कुछ घटनाएं हुई जैसे वियतनाम गृहयुद्ध, अरब- इजरायल युद्ध, भारत- बांग्लादेश युद्ध इत्यादि।

1979-1991 का चौथा चरण:-

  • 1987-INF संधि:-पहली बार शस्त्रों की संख्या में कटौती को लेकर समझौता हुआ। 
  • 1988 में USSR ने अफगानिस्तान से सेना को वापस बुलाया तथा पूर्वी यूरोप में हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया।
  • 1989 में बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई और 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ।

                         वार्सा पैक्ट को समाप्त कर दिया गया दिसंबर 1991 में USSR के विघटन के साथ एक गुट का अंत हो गया।1945-1991 के काल को शीत युद्ध का काल कहते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में 1945 से पूर्व तथा 1991 के पश्चात भी शीत युद्ध जैसी विशेषताएं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देखी जा सकती हैं। 

 

 


 

Q2: "शुरुआत में नेपोलियन ने फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों को पोषित किया लेकिन अंत तक उनका पालन नहीं कर सका।" चर्चा कीजिये।

"Initially Napoleon cherished the ideals of the French revolution but could not adhere to them till the end." Discuss

 दृष्टिकोण -

·       प्रस्तावना में फ्रांसीसी क्रांति से उत्पन्न महत्वपूर्ण विचार और नेपोलियन के उदय की चर्चा कीजिये|

·       प्रथम खंड में नेपोलियन के उन कार्यों की चर्चा कीजिये जिनपर पर क्रांति के प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होते थे|

·       दूसरे खंड में नेपोलियन द्वारा क्रांति से उत्पन्न इन विचारों के उल्लंघन की चर्चा कीजिये|

·       अंतिम में मूल्यों का उल्लंघन और नेपोलियन के पतन में सम्बन्ध स्थापित करते हुए उत्तर समाप्त कीजिये|

उत्तर -

                            नेपोलियन का उदय फ्रांसीसी क्रांति के केन्द्रीय तत्व जिनमें  मुक्ति ,स्वतंत्रता व समानता मुख्य थे उन्हें लेकर हुआ| इसलिए इसे कुछ इतिहासकारों के द्वारा क्रांति पुत्र कहकर भी संबोधित किया गया है| नेपोलियन ने  पुरातन राजतंत्रीय व विशेषाधिकार युक्त व्यवस्था के स्थान पर कानून के शासन को तत्कालीन राजनीति की मुख्य धारा में शामिल किया|| क्रान्ति विरोधियों की उपस्थिति से क्रान्ति के समक्ष खतरा था, सैनिक अभियानों की सफलता, किसी महत्वपूर्ण प्रतिद्वंदी की अनुपस्थिति के साथ ही साथ नेतृत्व के गुण, सैनिक प्रतिभा, निर्णय लेने की क्षमता, साहस जैसे कारकों ने नेपोलियन को सत्ता के शिखर पर पहुंचाया | 1799 में फ्रांसीसी संविधान में परिवर्तन, तीन पार्षदों को कार्यपालिका की जिम्मेदारी, प्रथम पार्षद को अधिक अधिकार तथा नेपोलियन प्रथम पार्षद बना| 1802 में संविधान संशोधन कर आजीवन अपने पद पर बने रहने की व्यवस्था की| 1804 में एक जनमत संग्रह कराया और नेपोलियन को फ्रांसीसी गणतंत्र का सम्राट कहा जाने लगा|

क्रान्ति के विचारों की प्रतिध्वनि

क्रान्ति का विस्तार

  • एक छोटी ही अवधि में यूरोप के बड़े भूभाग पर नियंत्रण की स्थापना की गयी जैसे इटली,जर्मनी,पोलैंड आदि| विजित क्षेत्रों में पुरानी व्यवस्था समाप्त कर आधुनिक राजनीति से सम्बंधित विभिन्न तत्वों की स्थापना की गयी।
  • जर्मनी, इटली जो कि कई भागों में विभक्त थे उन्हें एक शक्ति के अधीन लाया| आधुनिक कानूनों के आधार पर शासन की नींव रखी| राजतंत्रात्मक व्यवस्था तथा विशेषाधिकारों पर प्रहार किया| इस पूरी प्रक्रिया में इन राष्ट्रों के मध्य वर्ग तथा आम लोगों का भी समर्थन मिला।
  • दक्षिण पूर्वी यूरोप में भी नेपोलियन के अभियानों के कारण एक राजनीतिक हलचल प्रारम्भ हुई| इस प्रकार नेपोलियन ने न केवल यूरोपीय राजनीतिक नक़्शे को परिवर्तित किया बल्कि समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व जैसे विचारों को भी यूरोप में चर्चा का विषय बनाया|

प्रशासन के क्षेत्र में

  • क्रांति काल की प्रमुख विशेषताएं थी - निर्वाचन,योग्यता के आधार पर चुनाव आदि जिसे नेपोलियन ने स्वीकार किया और निर्वाचन प्रणाली की प्रारंभ की गयी|
  • फ्रांस में प्रशासन के क्षेत्र में क्रान्तिकालीन परिवर्तनों को बनाए रखने(जैसे संविधान का शासन, प्रशासनिक विभाजन) के साथ ही सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर परिवार के सदस्यों तथा कृपापात्र लोगों की नियुक्ति की।

कानून केक्षेत्र में 

  • नेपोलियन के द्वारा ही वर्त्तमान आधुनिक समाज के कानूनी आधार निर्मित किये गए जो विभिन्न रूपों में आज भी यूरोप में और उसके बाहर भी लागू हैं|
  • नेपोलियन ने सिविल कोड(नागरिक संहिता), पीनल कोड(दंड संहिता) व्यावसायिक संहिता आदि विभिन्न कानूनों का संकलन कराया| इस प्रक्रिया में नेपोलियन की व्यक्तिगत रूचि थी।
  • इन कानूनों के कारण न केवल फ्रांस का विधिक एकीकरण हुआ बल्कि यूरोप में भी इन कानूनों को लागू किया|
  • यह नेपोलियन का एक स्थायी कार्य था जिसका प्रभाव आज भी फ्रांस पर देख सकते हैं|इससे कानून के शासन की अवधारणा को मजबूती मिली|

धर्म के क्षेत्र  में 

  • इसके साथ ही 1801 में पोप के साथ समझौता किया| इस समझौते के माध्यम से नेपोलियन ने धार्मिक तनावों को कम करने की कोशिश की।
  • पोप ने क्रान्तिकाल के दौरान धर्म के क्षेत्र में हुए परिवर्तनों को स्वीकार किया।
  • कैथोलिक धर्म को नेपोलियन ने बहुमत का धर्म माना।
  • इससे धर्म के निरंकुशता और नियंत्रण का दौर ख़त्म हुआ और राज्य की अवधारणा को मजबूती प्रदान की गयी |

शिक्षा के क्षेत्र में

  • क्रान्तिकाल की तरह नेपोलियन ने भी शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त रखा।
  • प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के विकास के लिए नीति बनायी।
  • शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए नार्मन स्कूल की स्थापना की।

आर्थिक क्षेत्र में 

  • नेपोलियन ने आर्थिक विकास के लिए कुछ कार्य किये जैसे सडकों, नहरों इत्यादि आधारभूत ढाँचे के विकास को महत्त्व दिया गया।
  • बैंक ऑफ़ फ्रांस की स्थापना की गयी, स्वदेशी वस्त्रों के प्रोत्साहन के लिए प्रदर्शनी का आयोजन किया जाने लगा|

क्रान्ति के विचारों का उल्लंघन

  • नेपोलियन ने साम्राज्य विस्तार के माध्यम से क्रान्ति के विचारों का प्रसार किया किन्तु इसकी कुछ सीमाएं भी थीं जैसे इन राष्ट्रों में सत्ता के शीर्ष पर अपने परिवार के लोगों को बैठाया तथा यदा कदा इन राष्ट्रों के साथ उपनिवेशों के जैसा व्यवहार करने लगा| इससे भाई-भतीजावाद को प्रश्रय मिला।
  • क्रांति काल में प्रारंभ निर्वाचन व योग्यता के आधार पर चुनाव की प्रक्रिया को स्वयं  नेपोलियन के द्वारा  ही थोड़े समय के बाद नकार दिया गया तथा शहरों तथा स्वायत्तशासी इकाइयों में निर्वाचन के स्थान पर मनोनयन को महत्त्व दिया और महत्वपूर्ण पदों पर अपने रिश्तेदारों को बिठाने की राजतंत्रीय व्यवहार्य प्रारंभ हो गए|
  • नेपोलियन ने निर्वाचन के स्थान पर मनोनयन को महत्त्व दिया तथा स्वयं भी आजीवन अपने पद पर बना रहा| ये परिवर्तन कहीं न कहीं क्रान्ति के मूल्यों के विपरीत थे।
  • क्रान्ति के मूल्यों से प्रभावित हो कर नेपोलियन ने विधि के शासन की स्थापना के लिए विभिन्न कानूनों को संहिताबद्ध करवाया  हालांकि इन कानूनों की सीमाएं भी थीं जैसे संपत्ति में केवल पुत्रों को अधिकार दिया जाना तथा व्यावसायिक विवादों की स्थिति में पूंजीपतियों के पक्ष में निर्णय का प्रावधान करना आदि विशेषाधिकार को दर्शाता है जो क्रांति के सिद्धांतों का स्पष्ट तौर पर उल्लंघन था|
  • शिक्षा में सुधार के अंतर्गत शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर नेपोलियन का महिमामंडन, सैनिक शिक्षा पर बल, उच्च शिक्षा एवं प्रेस पर कठोर सरकारी नियंत्रण स्थापित करना इन शैक्षणिक प्रयासों की सीमाएं थीं|
  • ज्ञातव्य है कि फ्रांस की क्रांति में राजा की आर्थिक विफलता को मुख्य मुद्दा बनाया गया था परन्तु नेपोलियन के द्वारा भी उसके कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढें गए| तत्कालीन परिस्थितियों पर ध्यान न देते हुए नेपोलियन ने औद्योगीकरण पर बल नहीं दिया| इससे ब्रिटेन की बनी औद्योगिक वस्तुओं पर फ्रांस निर्भरता बनी रही| इसके साथ ही महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण पूँजीवाद की गति को रोकने की कोशिश की| यह स्वतंत्रता के मूल्य के विपरीत प्रयास था|

                    इस प्रकार नेपोलियन का उदय क्रांति से उत्पन्न  सिद्धांतों को ही लेकर हुआ | परन्तु आगे चलकर उसी के द्वारा इन  सिद्धांतों  विपरीत कार्य किये गए और नेपोलियन स्वयं एक निरंकुश सम्राट की तरह बन गया| नेपोलियन ने कमोबेश राजतंत्रात्मक व्यवस्था  के समान राजनीतिक प्रणाली की स्थापना करने का प्रयास किया| किन्तु क्रान्ति के मूल्यों के साथ समझौता करना ही नेपोलियन के पतन का निहित कारण बना |