Q1. गरीबी क्या है ? गरीबी रेखा के निर्धारण से संबन्धित विभिन्न समितियों का उल्लेख कीजिये ?
What is poverty? Mention the various committees related to the determination of the poverty line?
दृष्टिकोण -
· भूमिका में निर्धनता तथा निर्धनता रेखा को परिभाषित कीजिये।
· मुख्य भाग में गरीबी रेखा के संदर्भ में विभिन्न समितियों की सिफारिशों को क्रमबद्धता के साथ बताएं।
· अंतिम में सुझावात्मक निष्कर्ष लिखिए।
उत्तर -
गरीबी या निर्धनता वह स्थिति है जिसमे व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम होता है। अर्थात निर्धनता का तात्पर्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के न्यूनतम संसाधनों को न जुटा पाने से है। निर्धनता की अवधारणा आर्थिक विकास, प्रति व्यक्ति आय, क्रयशक्ति एवं जनसंख्या से सम्बन्धित है। निर्धनता के 2 प्रकार होते हैं। प्रथम, निरपेक्ष निर्धनता एवं द्वितीय, सापेक्ष निर्धनता। राष्ट्रीय विकास के स्तर का आकलन, विकासात्मक योजनाओं के निर्माण तथा उनके निष्पादन के आकलन और योग्य लाभार्थियों की पहचान आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निर्धनता का मापन किया जाता है। निरपेक्ष निर्धनता के मापन के संदर्भ में निर्धनता रेखा की अवधारणा प्रस्तुत की जाती है।
निर्धनता रेखा उस आय स्तर को कहते हैं जिससे कम आय होने पर व्यक्ति अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता है। निर्धनता रेखा अलग-अलग राष्ट्रों में अलग-अलग होती है। भारत में निर्धनता रेखा का आकलन मासिक उपभोग व्यय के संदर्भ में NSSO के आंकड़ों के आधार पर नीति आयोग द्वारा किया जाता है। यह निर्धारण विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाए गए मानदंडों के आधार पर किया जाता है। भारत में गरीबी रेखा के निर्धारक मानदंडों की संस्तुति के लिए योजना आयोग/ नीति आयोग द्वारा अब तक विभिन्न विशेषज्ञ समितियां गठित की जा चुकी हैं। इन विशेषज्ञ समितियों और इनके द्वारा की गयी संस्तुतियों का क्रमबद्ध विवरण निम्नलिखित है-
· गरीबी रेखा तय करने की शुरुआत योजना आयोग ने 1962 में एक कार्यकारी समूह बनाकर की थी।इसने प्रचलित मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति 20 रुपये मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा माना था।
· वाई के अलघ समिति- इस समिति का गठन योजना आयोग 1979 में किया गया था। अलघ समिति ने न्यूनतम पोषण आवश्यकता के आधार पर निर्धनता रेखा के निर्धारण की सिफारिश की थी। समिति ने ICMR द्वारा सुझाए गए नगरीय & ग्रामीण पोषण स्तरों को आधार बना कर नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग अलग पोषण मानक सुझाए। अलघ समिति की सिफारिशों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी तथा नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले को BPL माना था। कैलोरी उपभोग के आधार पर निर्धारित गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 49 रूपये और नगरीय क्षेत्रों के लिए 56.64 रूपये मासिक थी ।
· लकडावाला समिति - 1989 में योजना आयोग द्वारा डी टी लकडावाला की अध्यक्षता में पुनः एक कार्यदल का गठन किया गया। लकड़ावाला समिति ने भी वाई के अलघ समिति के अनुरूप न्यूनतम पोषण आवश्यकता को गरीबी रेखा के निर्धारण का मानदंड माना। इस कार्यदल ने प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग निर्धनता रेखा निर्धारित की। लकडावाला समिति ने मूल्य निर्धारण के लिए मूल्य सूचकांकों को आधार बनाया। कैलोरी मानकों को समान रखा गया किन्तु , मूल्यों में परिवर्तन किया गया। अब गरीबी रेखा नगरीय क्षेत्रों के लिए 281 तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 205 रूपये निर्धारित की गयी थी।
· तेंदुलकर समिति - योजना आयोग द्वारा गरीबी रेखा के पुनर्निर्धारण के संदर्भ में सुझाव देने के लिए वर्ष 2005 में प्रो.सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में एक नई समिति का गठन किया। तेंदुलकर समिति ने न्यूनतम पोषण आवश्यकता के मानक को अस्वीकार कर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया। तेंदुलकर समिति द्वारा गरीबी बास्केट की अवधारणा प्रस्तुत की गयी। समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम व्यय 27 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन को गरीबी रेखा माना, जबकि नगरीय क्षेत्रों के लिए यह 33 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन था।
· रंगराजन समिति - तेंदुलकर समीति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा विभिन्न कारणों से विवादित रही। अतः गरीबी आकलन पद्धतियों की समीक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति का गठन किया गया।। समिति ने चयनित आवश्यक वस्तुओं पर किये गए न्यूनतम व्यय को ही आधार माना किन्तु तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाए गए मूल्यों को बढ़ा कर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 32 रूपये और नगरीय क्षेत्रों के लिए 47 रूपये कर दिया। इसी के आधार पर वर्ष 2011-12 में भारत में 30% जनसंख्या को गरीब माना गया।
· अन्य समितियों की तरह ही रंगराजन फार्मूला भी विवादित रहा। अतः वास्तविक गरीबी रेखा के आकलन के वर्ष 2015 में अरविन्द पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय टास्कफ़ोर्स का गठन किया गया।किन्तु यह दल गरीबी रेखा के निर्धारण के संदर्भ में अनिर्णीत रहा। तथापि टास्कफ़ोर्स ने नई निर्धनता रेखा के निर्धारण तक नीति आयोग/सरकार द्वारा तेंदुलकर समिति द्वारा प्रदत्त निर्धनता रेखा मानदंडों को अपनाने की सलाह दी है।
उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि चूँकि गरीबी रेखा निर्धारण मामले के व्यापक राजनीतिक एवं राजकोषीय निहितार्थ हैं। अतः गरीबी रेखा निर्धारण का मामला भारत में लगातार विवादित रहा है।साथ ही गरीबी रेखा के संदर्भ में सर्वसम्मति का अभाव है। अतः वास्तविक गरीबी रेखा की पहचान के लिए भारत सरकार को विश्व के अन्य देशों में अपनाई जा रही विधियों का अध्ययन एवं शोध पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
Q2. राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटे मे अंतर को स्पष्ट करते हुए राजकोषीय घाटे को कम करने से संबन्धित उपायों की चर्चा कीजिये ?
Explain the difference between revenue deficit and fiscal deficit, discuss the measures to reduce fiscal deficit?
दृष्टिकोण -
• राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटे के बारे में लिखिए।
• राजकोषीय घाटे से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों को लिखिए।
• राजकोषीय घाटे को कम करने के उपाय बताते हुए निष्कर्ष लिखें।
उत्तर –
राजस्व घाटा तब होता है जब सरकार के कुल खर्च उसकी अनुमानित आय से ज्यादा होते हैं। अर्थात सरकार के राजस्व खर्च और राजस्व प्राप्तियों के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा किसी देश की आर्थिक स्थिति की सही तस्वीर प्रस्तुत करती है । यह सरकार की सम्पूर्ण देयताओ को प्रदर्शित करती है । वस्तुत: राजकोषीय घाटा सरकार की सकल आय और सकल व्यय के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते है ।
राजकोषीय घाटे से उत्पन्न दुष्प्रभाव -
· अधिक सार्वजनिक ऋण के कारण debt trap की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
· अधिक सार्वजनिक व्यय से मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
· क्रोवडिंग आउट इफैक्ट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है । इससे निवेश हतोत्साहित होने की संभवना बनी रहती है ।
· सार्वजनिक ऋणों की पूर्ति के लिए सरकार टैक्स की दर को बढ़ा देती है जिससे कराघात जनता पर पड़ता है । इससे महंगाई बढ्ने की संभावना बनी रहती है ।
राजकोषीय घाटे को कम करने के उपाय -
· सरकार द्वारा सार्वजनिक ऋण और व्यय का समुचित प्रबंधन किया जाना चाहिए ।
· जनता को प्रदान की जाने वाली सहायिकी को तर्क संगत बनाना चाहिए ।
· कर प्रबंधन को युक्तियुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए ।
· विनिर्माण क्षेत्र पर विशेष धायन दिया जाना चाहिए ।
· मानव संसाधनो का कुशलतम प्रबंधन ।
· पूंजीगत निवेश को प्रोत्साहन ।
सार्वजनिक रुग्ण इकाइयों का विनिवेश जिससे सरकार पर से वित्तीय दायित्व की कमी हो सके ।
बजट 2022 मे राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4% लक्षित है । यह पिछले वर्ष घोषित राजकोषीय समेकन के अनुरूप है, जो 2025-26 तक राजकोषीय घाटे के 4.5% से नीचे के स्तर तक लाने का लक्ष्य रखा गया है।
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