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रूस की  नई परमाणु नीति

Updated : 2nd Oct 2024
रूस की  नई परमाणु नीति

रूस की  नई परमाणु नीति

  • रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में देश की नई परमाणु नीति की घोषणा की है, जिसमें महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। 

  • यह नया सिद्धांत पहले की तुलना में अधिक आक्रामक रुख अपनाता है और इसे "परमाणु निवारण पर राज्य नीति के मूल सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है। यहां इस नीति के मुख्य बिंदुओं का सारांश दिया गया है:

रूस का नया परमाणु सिद्धांत

  1. परमाणु हथियारों का उद्देश्य: रूस परमाणु हथियारों को केवल निवारण का साधन मानता है, और इनके उपयोग को अंतिम उपाय के रूप में देखता है।

  2. आक्रमण का निवारण: यह सिद्धांत रूसी सैन्य शक्ति द्वारा आक्रमण के निवारण पर जोर देता है। यदि रूस पर पारंपरिक हथियारों से हमला किया जाता है, तो वह परमाणु हथियारों से जवाब दे सकता है।

  3. राज्य के अस्तित्व पर खतरा: यदि राज्य का अस्तित्व खतरे में है, तो रूस अपने परमाणु शस्त्रागार का उपयोग दुश्मन द्वारा परमाणु या पारंपरिक हमले के विरुद्ध कर सकता है।

  4. संयुक्त हमले की परिभाषा: यदि एक गैर-परमाणु शक्ति, परमाणु शक्ति का समर्थन लेकर रूस के खिलाफ हमला करती है, तो इसे 'रूसी संघ पर संयुक्त हमला' माना जाएगा।

  5. बड़े पैमाने पर हवाई हमले: संशोधित सिद्धांत के अनुसार, परमाणु हथियारों का उपयोग बड़े पैमाने पर हवाई हमलों की स्थिति में भी किया जा सकता है, जब विश्वसनीय जानकारी प्राप्त होती है कि हवाई और अंतरिक्ष हमलों का प्रक्षेपण हो रहा है।

  6. बैलिस्टिक मिसाइलों का खतरा: यदि रूस या उसके सहयोगियों के क्षेत्र में बैलिस्टिक मिसाइलों का प्रक्षेपण होने की विश्वसनीय जानकारी मिलती है, तो रूस अपने परमाणु शस्त्रागार का उपयोग करेगा।

  7. बेलारूस का समावेश: राष्ट्रपति पुतिन के अनुसार, यह संशोधित परमाणु सिद्धांत पड़ोसी देश बेलारूस को भी आच्छादित करेगा, जहां रूस ने कुछ सामरिक परमाणु हथियार तैनात किए हैं।

अमेरिका के साथ नई START संधि

  • रूस ने फरवरी 2023 में अमेरिका के साथ नई START संधि में भागीदारी को निलंबित कर दिया था, जो परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करने वाली थी।

वैश्विक परमाणु शक्ति

  • वर्तमान में, दुनिया में नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जिनमें रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्तान, भारत, इज़राइल और उत्तर कोरिया शामिल हैं। रूस के पास लगभग 6,000 परमाणु हथियार हैं, जबकि अमेरिका के पास लगभग 5,000 हैं।

रूस का यह नया परमाणु सिद्धांत उसके पश्चिमी विरोधियों के बढ़ते कदमों के संदर्भ में आया है, विशेष रूप से यूक्रेन के खिलाफ हाल के घटनाक्रमों के कारण। यह स्थिति वैश्विक सुरक्षा में नए तनाव और अनिश्चितता को जन्म दे सकती है।

हाल के वर्षों में, कई देशों ने अपनी परमाणु नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। यहाँ भारत, उत्तर कोरिया, चीन, और पाकिस्तान द्वारा अपनाई गई नई नीतियों का सारांश दिया गया है:

भारत

  • नो फर्स्ट यूज (NFU) नीति: अगस्त 2019 में, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संकेत दिया कि भारत अपनी NFU नीति पर पुनर्विचार कर सकता है। इसका मतलब है कि भारत केवल तब परमाणु हथियारों का उपयोग करेगा जब किसी अन्य देश द्वारा उस पर परमाणु हमला किया जाएगा। यह नीति भारत की सुरक्षा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है।

उत्तर कोरिया

  • परमाणु हथियार रखने का कानून: उत्तर कोरिया ने 2013 और 2022 में परमाणु हथियार रखने के कानून बनाए।

    • 2013 का कानून: उत्तर कोरिया ने कहा कि वह पहले परमाणु हमले नहीं करेगा, लेकिन यदि कोई परमाणु शक्ति पारंपरिक हथियारों से हमला करती है, तो वह जवाबी हमला कर सकता है।

    • 2022 का कानून: इस कानून के अनुसार, उत्तर कोरिया केवल तब नहीं, बल्कि संभावित हमले के आसन्न खतरे की स्थिति में भी परमाणु हथियारों का उपयोग कर सकता है।

चीन

  • NFU नीति में परिवर्तन: अक्टूबर 2023 में, चीन ने अपनी औपचारिक स्थिति से NFU को हटा दिया, हालांकि उसने आधिकारिक तौर पर इसका उल्लेख नहीं किया है।

    • चीन 1964 से NFU की प्रतिज्ञा करने वाला पहला देश था और दशकों तक इसे बनाए रखा। इस बदलाव का अर्थ है कि चीन अब अपनी परमाणु नीति में अधिक लचीलापन ला सकता है।

पाकिस्तान

  • पहले उपयोग न करने की नीति: मई 2024 में, पाकिस्तान के राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण (NCA) के सलाहकार खालिद अहमद किदवई ने बताया कि पाकिस्तान के पास NFU की नीति नहीं है।

    • पाकिस्तान ने अब तक एक स्पष्ट परमाणु सिद्धांत प्रकाशित नहीं किया है, लेकिन यह संकेत दिया गया है कि पाकिस्तान सामरिक परमाणु हथियारों का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है।

निष्कर्ष

इन परिवर्तनों से स्पष्ट होता है कि वैश्विक स्तर पर परमाणु नीति में नई दिशा अपनाई जा रही है, जो सुरक्षा रणनीतियों और क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकती है। यह स्थिति न केवल संबंधित देशों के लिए, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है