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माइक्रोप्लास्टिक का सर्वव्यापी संकट

Updated : 4th Sep 2024
माइक्रोप्लास्टिक का सर्वव्यापी संकट

माइक्रोप्लास्टिक का सर्वव्यापी संकट

  • पर्यावरण अनुसंधान संगठन टॉक्सिक्स लिंक जारी की गई "नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक्स" नाम की रिपोर्ट जारी किया । 

  • इस रिपोर्ट में  10 प्रकार के नमक - जिसमें टेबल नमक, सेंधा नमक, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चा नमक तथा पांच प्रकार की चीनी का भी परीक्षण किया गया.

  • इस अध्ययन में पाया गया कि सभी नमक और चीनी के नमूनों में फाइबर, छर्रे, फिल्म और टुकड़ों सहित विभिन्न रूपों में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति होती है.

  • इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 5 मिमी तक होता है. 

  • आयोडीन युक्त नमक में सबसे अधिक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए, जो बहुरंगी पतले रेशों और फिल्मों के रूप में पाए गए। 

  • इस स्टडी के अनुसार भारत में बिकने वाले नमक और चीनी के टॉप ब्रांड्स और छोटे ब्रांड्स, चाहे वे पैक्ड हों या अनपैक्ड, सभी में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं.

 

माइक्रोप्लास्टिक के विषय में 

माइक्रोप्लास्टिक छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर (0.5 सेंटीमीटर) से कम होता है। ये प्लास्टिक कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें आमतौर पर नग्न आंखों से देख पाना मुश्किल होता है।

माइक्रोप्लास्टिक के प्रकार:

प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: 

  • ये जानबूझकर बनाए गए छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जैसे कि सौंदर्य प्रसाधनों (फेस स्क्रब, टूथपेस्ट) में इस्तेमाल होने वाले माइक्रोबीड्स, और इंडस्ट्रियल प्रक्रियाओं में उपयोग किए जाने वाले छोटे प्लास्टिक कण।

  • कृषि उर्वरकों में माइक्रोप्लास्टिक योजक भी होते हैं जो पर्यावरण में फैल जाते हैं, जिससे मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता बढ़ जाती है। 

  • ये माइक्रोप्लास्टिक बारिश, सिंचाई या नियमित जल उपयोग से होने वाले जल अपवाह के माध्यम से प्राकृतिक वातावरण में प्रवेश करते हैं । 

द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: 

  • ये बड़े प्लास्टिक उत्पादों के टूटने और विघटित होने से बनते हैं। जैसे कि प्लास्टिक की बोतलें, बैग, और अन्य प्लास्टिक कचरे के समय के साथ छोटे-छोटे कणों में टूटने से द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण होता है।

माइक्रोप्लास्टिक के सामान्य स्रोतों में प्लास्टिक पैकेजिंग, कॉस्मेटिक उत्पाद, कपड़े, टायर, पेंट, कृत्रिम टर्फ पिच, कृषि पद्धतियां, तथा मछली पकड़ना, शिपिंग, विनिर्माण और उत्पादन जैसे कई उद्योग शामिल हैं।

 

माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रभाव 

स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:

  • मिट्टी में परिवर्तन: माइक्रोप्लास्टिक्स मिट्टी की संरचना और इसके भौतिक-रासायनिक गुणों को बदल देते हैं। ये मिट्टी के पोषक तत्व और छिद्रण को प्रभावित करते हैं, जिससे पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, पानी के वाष्पीकरण और अवशोषण की दर भी प्रभावित होती है, जिससे कृषि और प्राकृतिक वनस्पति को नुकसान पहुंच सकता है।

  • पौधों की वृद्धि: मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति से पौधों की जड़ें प्रभावित हो सकती हैं, जिससे उनकी विकास दर धीमी हो जाती है और पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है। यह पूरे खाद्य श्रृंखला पर असर डाल सकता है, क्योंकि पौधे पारिस्थितिकी तंत्र के आधारभूत घटक होते हैं।

जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:

  • समुद्री जीवन पर असर: जलीय प्रणालियों में माइक्रोप्लास्टिक्स का संचय समुद्री जीवों के लिए बेहद हानिकारक हो रहे है । प्लास्टिक के क्षरण से निकलने वाले जहरीले रसायन पानी में पोषक तत्वों के चक्र को बाधित करते हैं, जिससे खाद्य जाल में व्यवधान उत्पन्न होता है। इसके अलावा, ये रसायन समुद्री जीवों के पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते हैं, और उनके व्यवहार में भी बदलाव ला सकते हैं, जैसे कि तैराकी पैटर्न में परिवर्तन।

  • जब समुद्री जीव माइक्रोप्लास्टिक्स का सेवन करते हैं, तो यह सूजन, पाचन तंत्र में रुकावट और संभावित मृत्यु का कारण बन सकता है। यह समस्या विशेष रूप से मछलियों, अकशेरुकी जीवों और अन्य समुद्री प्रजातियों के लिए गंभीर है।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • उपभोग के माध्यम से संपर्क: माइक्रोप्लास्टिक्स नल के पानी, बोतलबंद पानी, समुद्री भोजन, और नमक में पाए जाते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य पर जोखिम बढ़ता है। साँस लेने और निगलने से ये कण मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

  • अनिश्चित स्वास्थ्य प्रभाव: हालांकि मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावों के बारे में अभी भी अनुसंधान जारी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इनके साथ जुड़े जहरीले रसायन मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इससे सूजन, कैंसर, हार्मोनल असंतुलन, और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

माइक्रोप्लास्टिक्स का यह सर्वव्यापी संकट हमें पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों पर इसके गहरे प्रभावों को समझने और समाधान खोजने की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता को दर्शाता है।

नियंत्रण के उपाय - 

  1. प्लास्टिक उपयोग पर प्रतिबंध: सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने और प्लास्टिक उत्पादन में कमी के लिए सख्त नीतियां लागू करना।

  2. प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए सख्त कानून: प्लास्टिक कचरे के संग्रह, पुनर्चक्रण और निपटान के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए, ताकि यह कचरा पर्यावरण में न पहुंचे।

  3. माइक्रोप्लास्टिक के उपयोग पर नियंत्रण: सौंदर्य प्रसाधनों और अन्य उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना या उसे सीमित करना।

  4. बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली: प्रभावी अपशिष्ट संग्रहण और पुनर्चक्रण प्रणालियों को स्थापित करना, ताकि प्लास्टिक कचरे को सही तरीके से निपटाया जा सके।

  5. बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का विकास: बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण-अनुकूल प्लास्टिक सामग्री का विकास और उपयोग बढ़ाना।

  6. सस्टेनेबल विकल्पों का चयन: पुन: उपयोग होने वाले बैग, बायोडिग्रेडेबल उत्पाद, और सस्टेनेबल सामग्रियों का उपयोग बढ़ाना।