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लद्दाख का मुद्दा 

Updated : 5th Oct 2024
लद्दाख का मुद्दा 

लद्दाख का मुद्दा 

3 अक्टूबर, 2024 को प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को दिल्ली की सीमा पर हिरासत में लिया गया, जब वे लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

भारतीय संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियां

भारतीय संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियां जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन और उनकी विशेष आवश्यकताओं के संरक्षण के लिए बनाए गए संवैधानिक प्रावधान हैं। आइए दोनों को विस्तार से समझें:

पांचवीं अनुसूची:

यह अनुसूची "अनुसूचित क्षेत्रों" पर लागू होती है, जो आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्र होते हैं और जिनकी विशेष सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताएं होती हैं। ये क्षेत्र आमतौर पर विकास की दृष्टि से पिछड़े माने जाते हैं। वर्तमान में, दस भारतीय राज्यों ने पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र नामित किये हैं।पाँचवीं अनुसूची की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC): प्रत्येक राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है, जो राज्यपाल को जनजातीय कल्याण के लिए सुझाव देती है।

  • राज्यपाल की शक्तियाँ: राज्यपाल के पास यह अधिकार होता है कि वह यह तय कर सके कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून इन क्षेत्रों में लागू होंगे या नहीं। इसके अलावा, राज्यपाल जनजातीय भूमि के हस्तांतरण और आदिवासियों की आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है।

  • भूमि अधिकार और संरक्षण: पांचवीं अनुसूची के तहत, आदिवासी भूमि के संरक्षण पर विशेष जोर दिया गया है। इस प्रावधान के तहत, गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध हो सकता है।

छठी अनुसूची:

यह अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के विशिष्ट जनजातीय क्षेत्रों पर लागू होती है और यहां की जनजातियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं:

  • स्वायत्त जिला परिषद (ADC): इन जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्तता प्रदान करने के लिए स्वायत्त जिला परिषदों का गठन किया गया है। ये परिषदें स्थानीय शासन के लिए जिम्मेदार होती हैं और भूमि, विवाह, सामाजिक रीति-रिवाज, आदि पर कानून बना सकती हैं।

  • न्यायिक अधिकार: ADC को न्यायिक शक्तियां दी गई हैं, जो आदिवासी मामलों में अदालतें स्थापित कर सकती हैं। ये अदालतें मुख्य रूप से ऐसे मामलों में काम करती हैं जहां दोनों पक्ष अनुसूचित जनजाति से होते हैं।

  • राजस्व और कराधान: स्वायत्त जिला परिषदें भूमि राजस्व एकत्र कर सकती हैं और व्यापारिक गतिविधियों पर कर लगा सकती हैं। यह स्थानीय प्रशासन को वित्तीय स्वतंत्रता देता है।

  • अधिक स्वायत्तता: छठी अनुसूची पांचवीं अनुसूची की तुलना में अधिक कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियां प्रदान करती है, जिससे इन क्षेत्रों के जनजातीय समुदायों को अपने अधिकारों और संसाधनों पर अधिक नियंत्रण मिलता है।

मुख्य अंतर:

  • पांचवीं अनुसूची: यह अनुसूची राज्यपाल और जनजातीय सलाहकार परिषद के माध्यम से जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है, लेकिन स्वायत्तता सीमित होती है।

  • छठी अनुसूची: यह अनुसूची अधिक स्वायत्तता देती है, जिसमें स्वायत्त जिला परिषदें स्थानीय शासन, कानून व्यवस्था और कराधान पर अधिक नियंत्रण रखती हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशेष प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत पूर्वोत्तर राज्यों को दिए गए विशेष प्रावधानों का उद्देश्य स्थानीय सांस्कृतिक पहचान, रीति-रिवाजों और प्रशासनिक आवश्यकताओं की रक्षा करना है। ये प्रावधान क्षेत्र के सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं। यहाँ विभिन्न अनुच्छेदों के तहत मिलने वाले विशेष प्रावधानों की जानकारी दी गई है:

  1. अनुच्छेद 371A (नागालैंड):

    • यह अनुच्छेद नागालैंड में प्रथागत कानूनों और रीति-रिवाजों की रक्षा करता है।

    • इसके तहत, नागालैंड में कानूनों और प्रथाओं को स्थानीय संदर्भ में बनाए रखने का प्रावधान है, जिससे स्थानीय समुदायों की पहचान और संस्कृति को संरक्षण मिल सके।

  2. अनुच्छेद 371B (असम):

    • असम में जनजातीय और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विधानसभा में अलग-अलग समितियों की स्थापना की गई है।

    • यह प्रावधान स्थानीय जनजातीय समुदायों की आवश्यकताओं को समझने और उनके अधिकारों का संरक्षण करने के लिए विशेष ध्यान देता है।

  3. अनुच्छेद 371G (मिजोरम):

    • यह अनुच्छेद भी प्रथागत कानूनों और स्थानीय रीति-रिवाजों की रक्षा करता है, जिससे मिजोरम में स्थानीय संस्कृति और पहचान को सहेजने का प्रयास किया जाता है।

    • इसमें स्थानीय समुदायों को उनके मामलों में अधिक स्वायत्तता और अधिकार प्रदान किया गया है।

  4. अनुच्छेद 371C (मणिपुर):

    • मणिपुर में भी जनजातीय और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विधानसभा में अलग-अलग समितियों की स्थापना की गई है।

    • यह जनजातीय समुदायों के हितों की रक्षा करने और उनकी आवाज को प्रभावी बनाने का काम करता है।

ये विशेष प्रावधान जनजातीय समुदायों को एकीकृत करने और उनकी विशिष्ट पहचान को संरक्षित करने के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने के भारत के प्रयास का हिस्सा हैं। इससे न केवल स्थानीय रीति-रिवाजों का संरक्षण होता है, बल्कि स्थानीय सरकारों को विशेष शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने क्षेत्रों में प्रशासनिक मामलों को बेहतर तरीके से संभाल सकें।

लद्दाख की छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग

2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने के बाद से स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लगातार छठी अनुसूची के तहत विशेष संवैधानिक सुरक्षा की मांग उठाई है। यह मांग लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी, सांस्कृतिक पहचान और स्थानीय लोगों के अधिकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए की जा रही है।

मुख्य तर्क:

  1. पारिस्थितिकी संरक्षण:

    • लद्दाख का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यधिक नाजुक है। स्थानीय नेताओं का तर्क है कि यदि क्षेत्र को छठी अनुसूची के तहत संरक्षण नहीं मिलता है, तो प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का खतरा बढ़ जाएगा।

    • संसाधनों का अनियंत्रित उपयोग लद्दाख की जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन को बिगाड़ सकता है।

  2. सांस्कृतिक पहचान:

    • लद्दाख के लोग मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय से हैं, और उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की आवश्यकता है। कार्यकर्ताओं का मानना है कि बिना संवैधानिक सुरक्षा के, उनकी सांस्कृतिक विरासत कमजोर हो सकती है।

    • छठी अनुसूची का दर्जा मिलने से स्थानीय समुदायों को अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को बनाए रखने का अधिकार मिलेगा।

  3. अन्य क्षेत्रों से समानता:

    • यह मांग केवल लद्दाख तक सीमित नहीं है; अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे क्षेत्रों में भी ऐसी ही मांगें उठाई जा रही हैं। ये क्षेत्र भी जनजातीय आबादी की अधिकता के कारण विशेष संवैधानिक प्रावधानों की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।

निष्कर्ष

लद्दाख की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग अधिक स्वायत्तता, सांस्कृतिक संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की व्यापक इच्छा को दर्शाती है। जैसे-जैसे भारत अपने विविध जनजातीय क्षेत्रों के प्रबंधन की जटिलताओं से निपट रहा है, पांचवीं और छठी अनुसूची जैसे संवैधानिक प्रावधान स्वदेशी अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हालाँकि, इन प्रावधानों का कार्यान्वयन और सुधार आवश्यक हैं ताकि आदिवासी समुदायों को वास्तविक स्वायत्तता और समावेशिता प्राप्त हो सके। यह सुनिश्चित करने के लिए कि लद्दाख और अन्य जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों की आवाज सुनाई जाए और उनके अधिकारों की रक्षा की जाए, आगे की कार्रवाई और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।