23वें विधि आयोग का गठन किया
केंद्र ने तीन वर्ष की अवधि के लिए 23वें विधि आयोग के गठन को अधिसूचित किया।
आयोग का कार्यकाल 1 सितंबर 2024 से 31 अगस्त 2027 तक तीन साल की अवधि के लिए होगा।
भारत के 23वें विधि आयोग की संरचना
भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार, भारत के 23वें विधि आयोग में पांच पूर्णकालिक सदस्य होंगे।
विधि आयोग के अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्य सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों के सेवारत न्यायाधीश होंगे।
सदस्य व अध्यक्ष
अध्यक्ष,
चार पूर्णकालिक सदस्य (सदस्य-सचिव सहित);
पदेन सदस्य, सचिव, विधि कार्य विभाग;
पदेन सदस्य, सचिव, विधायी विभाग; तथा
अधिकतम पांच अंशकालिक सदस्य।
भारत का विधि आयोग (Law Commission of India ) के विषय में
भारत का विधि आयोग (Law Commission of India ) भारत सरकार द्वारा स्थापित एक गैर-सांविधिक संगठन है जो समय-समय पर उत्पन्न होने वाले किसी भी कानूनी मामलों पर सलाह देता है।
आयोग की स्थापना 1955 में हुई थी और हर तीन साल में इसका पुनर्गठन किया जाता है।
भारत का विधि आयोग (Law Commission of India) कानून और न्याय मंत्रालय के लिए एक सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
प्रथम विधि आयोग वर्ष 1834 में 1833 के चार्टर एक्ट के तहत लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में गठित किया गया था जिसने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।
1955 में, भारत के पहले स्वतंत्र विधि आयोग का गठन किया गया था।
भारत के प्रथम महान्यायवादी श्री एम सी सीतलवाड़ ने इस पैनल की अध्यक्षता की।
22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी (2020-24) थे।
विधि आयोग का कार्य
विधि आयोग देश की कानूनी प्रणाली की समीक्षा करता है तथा इसमें सुधार लाने तथा इसे अधिक न्यायोन्मुख बनाने के लिए परिवर्तन का सुझाव देता है।
उन कानूनों की पहचान करें जो अब आवश्यक या प्रासंगिक नहीं हैं।
भाषा और प्रक्रियाओं को सरल बनाने सहित आवधिक समीक्षा के लिए, यह एक मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) विकसित करेगा।
वर्तमान आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऐसे कानूनों की पहचान करें जिनमें संशोधन की आवश्यकता है।
परिवर्तन की आवश्यकता वाले कानूनों में संशोधन का सुझाव दें।
नागरिकों की शिकायतों के त्वरित निवारण के लिए उपाय प्रस्तावित करना।
देश के गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की समीक्षा करना तथा सामाजिक-आर्थिक कानूनों के अधिनियमन के बाद उनका ऑडिट करना।
मामलों के त्वरित निपटान के लिए न्यायिक प्रणाली में सुधार
न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाना तथा विभिन्न उच्च न्यायालय नियमों में एकरूपता लाना
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